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________________ Maitrimmy اما ميه ميه فيحانا وقيمه معتمر يهديهمینه चतुर्थपादा *संस्कृत-हिन्दी-टोकालयोपेतम् ★ प्रभुत्तइ अादेश के अभाव में हाइवह स्नान करता है। यह रूप बनता है। ६८६-सम् उपसर्ग पूर्वक स्त्य धातु के स्थान में 'ला' यह प्रादेश होता है । जैसे------ संत्यायते-- संखाइ (वह संघात करता है.वह फैलाता है),२-संस्तीनम् = सखायं (धान करना) यहाँ स्त्यै धातु को खा यह आदेश किया गया है। ६७-स्था-धातु के स्थान में १-ठा, २-धबक, ३. विट्ठ और ४-निरप्प ये चार आदेश होते हैं। और विजिटाइड ठहरता है), २-स्थानम् - ठाणं (स्थान-ठहरना, जगह), ३-प्रस्थितः = पट्ठियो (जाता हुप्रा), ४--वस्थितः उट्ठियो (उठा हुग्रा),५-- प्रस्थापितः पट्ठाविप्रो (रक्खा हुमा), ६-उस्थापित: उट्टावियो (उठाया हुप्रा), ७-तिष्ठति -थक्काइ, चिटुप, निरप्पइ, -स्थित्वा-चिटिऊण (ठहर कर) यहां पर स्था धातु के स्थान में ठग प्रादि प्रादेश किए गर हैं। बहुलाधिकार के कारण कहीं-कहीं पर स्थाधातु को ये प्रादेश नहीं भी होते। जैसे-----स्थितम् - थिग्रं (ठहरा हुमा), २-स्थानम् -याणं, ३-प्रस्थित:-पत्यिो , ४--वस्थितः उत्यिधो, ५स्थिरता थाऊण, यहां पर स्थाधातु के स्थान में 'हा' मादि मादेश नहीं किये जा सके । ६८४-उद् उपमर्ग से परे यदि स्था धातु हो तो उसके स्थान में ठ और कुक्कुर ये दो प्रादेश होते हैं। जैसे-१ . उत्तिष्ठति उद्द, उक्क्क रद्द (बह उठता है) यहां पर स्था धातु को '४' प्रादि दो प्रादेश किए गए हैं। ६४-ग्लै धातु के स्थान में वा और पन्चाय में दो प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे--म्लायति वाई, पब्वाय प्रदेश के प्रभाव-पक्ष में मिलाइ (वह मुरझाता है। ऐसा रूप बनता है। __ -निर-पूर्वक मा धातु के स्थान में निम्माण और मिस ये दो मादेश होते हैं। जैसेनिर्मिमीले निम्माण इ, निम्मवइ (वह निर्माण करता है) यहाँ पर निर-पूर्वक मा धातु को निम्माण प्रादि दो प्रादेश किए गए हैं। ६९१---क्षिधातु के स्थान में विकल्प से णिज्झर' यह प्रादेश होता है। जैसे--क्षोपतेल णिजभरइ प्रादेश के प्रभावपक्ष में-झिजजाई (यह नष्ट होता है) यह रूप बनता है। ६६२-यन्त (जिसके अन्त में णि हो) छदि धातु के स्थान में-१-गुम, २ भूम, ३सन्दुम, ४-हरुक, ५-ओम्बाल और पव्वाल ये छह मादेश विकल्प से होते हैं। जैसे - छादयतिगुमइ, नूमइ, सन्नुमइ, ढक्कइ, मोम्बालइ, पव्वालइ प्रादेश के प्रभाव पक्ष में-यामह (बह कांकता है) यह रूप बनता है। जहां पर २२९ सूत्र से मादिम नकार को विकल्प से गकार कर दिया गया वहां पर एमाई यह रूप भी हो जाता है। ६९३ - निपूर्वक वृग् धातु और पति(पत् धातु इन दोनों ण्यन्त धातुओं के स्थान में विकल्म से 'बिहोई' यह नादेश होता है। जैसे-१-निवारयति-णिहोडइ, प्रदेिश के प्रभाव पक्ष में-निवारे (वह रुकवाता है), २-पातयति-णिहोडइ मादेश के प्रभाव-पक्ष में-पाडे (बह गिरवाता है) यह रूप बनता है। ६६४-यन्त दूधातु के स्थान में 'म' यह आदेश होता है । जैसे-दूयति मम हृदयम्मा दुमेह मज्झ हिअयं (वह मेरे हृदय को दुःखी करता है) यहां ण्यन्त दूधातु को दूम यह प्रादेश किया ६९५-ज्यन्त प्रवल धातु के स्थान में 'दुम' यह मादेश विकल्प से होता है। जैसे-धवल
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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