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________________ ३२२ ★प्राकृत-व्याकरणम्"* चतुर्थपादा अर्थात्-अरे ! गौरी [सुन्दरी] के सुन्दर मुख से पराजित यह मृगाङ्क [चन्द्र] बादलों में छिप गया है,जब चन्द्रमा की यह दशा है,तो दूसरा व्यक्ति जिस का कि पराभव | तिरस्कार हो गया है, वह निश्शंक हो कर कैसे भ्रमण कर सकता है? यहां पर कपम्-किव (फैसे), इस पद में पावि प्रवयव को टिम [धित् इम] यह प्रादेश किया गया है । बिह-हमादेश का उदाहरण बिम्बाधरे सन्ख्याः रखन-वणः कथं स्थितः श्री-आनन्द ।। निरुपमस्थ प्रियण पीत्वा शेषस्य ता मुद्रा ॥३॥ अर्थात हे श्री मानन्द [किसी व्यक्ति का नाम है] तनु-पतले शरीर वाली स्त्री के बिम्ब फल के समान लाल पर निचले होंठ ग [ प्रतीत होता है कि मानों निरुपम [अनुपम] रस पीकर प्रिय के द्वारा शेष रस पर मुद्रा [मोहर] अंकित कर दी गई हो। - यहां पर कथम् - किह [कैसे] इस अव्ययपद के थावि अवयव को डिह अर्थात् चित् इह यह मादेश किया गया है। देम-एम प्रादेश के अन्य जवाहरण-- भरण सखि ! निभूतकं तपा मयि यदि प्रिमो दृष्टः सदोषः । यथा न जानाति मम मनः पक्षाऽपतितं तस्य । अर्थात हे सखि ! यदि तू ने प्रिय को मुझ में सदोष [दोष वाला,नाराज] देखा है,तो गुप्तरूप से कह दे क्योंकि उस के पक्ष में पड़ा हमा मेरा मन उस के दोष को नहीं जान सकता। - यहां पर -तथा-तेव (वसे), २-यथावं (जैसे) इन दोनों पदों में यादि अवयव के स्थान में रेम [डित् एम] यह प्रादेश किया गया है। खिम्-इम के अन्य उदाहरण--यथा यथा - हिमालोचनयोः । तपा तथा मन्मयः निजकारान-जिव जि वखिम लोमणहं ! ति ति वम्मह निमय-सर[जैसे-जैसे नेत्रों की वकता होती है। वैसे-वैसे मन्मथ कामदेव अपने बाणों को यहां पर१-यपा-जिवें (जैसे), २-तवाति (से) इन पदों में पाक्षि अवयव के स्थान में दिम [जित इम] यह प्रादेश किया गया है। मपासातं प्रिये! विरहिताना, कापि धरा भवति विकाले ? 1 केवल मगारोऽपि तथा सपति, यथा बिनकरः क्षयकाले ॥५॥ इस श्लोक की व्याख्या १०४८ वें सूत्र में की जा चुकी है। पाठक वहां देखें। यहां पर-तथातिहाविसे] २-या जिह से इन पदों में पाधि अवयव के स्थान में बिह [डित् इह] यह प्रादेश किया गया है। वृत्तिकार फरमाते हैं कि इसी प्रकार तपा-तिन(वैसे )मोर यथा जिध(जैसे)इन पदों के उदाहरण भी समझ लेने चाहिएं। इन पदों में पाविमवयव को हित इष यह मादेश किया गया है। १०७३-अपभ्रंश भाषा में पाक मादिशब्दों के शावि [जिस के मादि में दकार हो] अवयव के स्थान में डिट (जिस में डकार इत् हो) एह यह मादेश होता है । जैसे मया भणितं बलिराज ! स्वं फोहर मार्गण एषः।। पाहक ताहा नाऽपि भवति, भूख ! स्वयं नारायणः ईहक ॥१॥ अर्थात-हे बलिराज ! (बलियों के स्वामिन् !) मैंने तुझ कहा है कि यह मांगने वाला कैसा है? कौन है ? । इस प्रश्न का समाधान करते हुए बलिराज' फरमाते हैं कि हे मुर्ख ! यह जैसा तैसा मर्थात् साधारण याचक नहीं है, किन्तु यह तो स्वयं नारायण [विष्णु] ही हो सकता है।
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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