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________________ २२४ *प्राकृत-व्याकरणम् * चतुर्थपादा तिष्ठति नाथः, यः सः रणे करोति मधान्तिम् प्रणि चिदि नाहु ध्रु रणि करदिन अम्ति (मेरे पतिदेव प्राङ्गण में विराजमान हैं, वो जो युद्ध में भ्रान्ति नहीं करता है, भाव यह है कि उस व्यक्ति को युद्ध में जो सन्देह नहीं है, इसका कारण है कि मेरे पति-देव उसके सामने प्रापन में खड़े हैं। यहां पर यः को ध्रु पोरसको ये दो प्रादेश कमशः विकल्प से किए गए हैं। प्रादेशों के अभावपक्ष में-त कम्यते पद निवहति -तं बोल्लिाइ जु निव्वहइ (उस से वह कहा जाता है, जो बह निभाता है) यहाँ पर यद् और तब इन शब्दों को क्रमशःqऔर त्रं ये दो आदेश नहीं हो सके। १०३२-अपनंशभाषा में, नपुसकलिङ्ग में वर्तमान-विद्यमान इवम् शब्द को सि और अम इन प्रत्ययों के प्रागे रहने पर मु'यह प्रादेश होता है। जैसे--इदं कुलं तब सम्बन्धी । इदं कुलं पश्य इमु कुलु तुह तणउं । इमु कुलु देक्यु [यह कुल-खानदान तेरा सम्बन्धी है,इस कुल को देखो] यहां पर इदम् शब्द को 'इमु यह आदेश किया गया है। १०३३ - अपभ्रंश भाषा में स्त्रीलिङ्ग,पुल्लिङ्ग और नपुसकलिङ्ग में वर्तमान-विद्यमान एतद् शब्द के स्थान में सि और अम् इन प्रत्ययों के परे होने पर यथासंख्य-क्रमशः एह, एहो और एह ये तीन आदेश होते हैं । अर्थात्--एतद् शब्द को स्त्रीलिङ्ग में एह पुस्लिम में एहो और नपुंसक-लिङ्ग में एतद् शब्द को एह यह प्रादेश हो जाता है । जैसे एषा कुमारी, एष नरः, एतद् मनोरम-स्थानम् । एतद् मुढामा चिन्तयतो पश्चात् भवति विभातम् ॥शा अति--यह कुमारी है-कन्या है, यह पुरुष है, यह मनोरथों का स्थान है, मुखों के इस प्रकार चिन्तन करते-करते ही पीछे प्रभात हो जाता है। यहां पर-एषा को एह । (यह कन्या) एक: को एहो (यह पुरुष) और एतद् को ए (यह स्थान) ये पादेश किए गए हैं। १०३४-अपभ्रंश भाषा में अस् प्रौर शस् इन प्रत्ययों के परे रहने पर एतद् शब्द के स्थान में 'ए' यह प्रादेश होता है । जैसे-१-एते तेवाएषा स्थली एइ ते घोड़ा,एह थलि [ये वे घोडे हैं, यह युद्धभूमि है], २-एतान् पश्प-एइ पेच्छ [इन को देखो] यहां पर--१-एते - ए इ (ये), २. एतानुभएछ (इन को) इन पदों में क्रमशः अस् और स् प्रत्यय के परे रहते एस शब्द के स्थान में 'ए' यह प्रादेश किया गया है। १०३५-अपभ्रंश-भाषा में अस् और शस् इन प्रत्ययों के परे रहते अवस् शब्द के स्थान में 'भोई यह आदेश होता है। जैसे यदि पृच्छय गृहाणि वृहन्ति, ततो वृहन्ति गृहाणि अमूनि । विह्वलित-अनाम्युशरणं कान्तं कुटीरके पश्य ॥१॥ ..अर्थात् यदि तुम बहे घरों को पूछते हो,तो देखो,बड़े घर के सामने हैं । यदि पीडित जनों का उद्धार करने वाले महापुरुष को देखना हो तो कुटीर[छोटी कुटिया में बैठे मेरे कान्त को देखो । भाव यह है कि वह कुटीर भी बड़ा घर होता है, जहां जन-कल्याण करने वाले लोगों का निबाम रहता है। . .यहां पर १-अभूमि-मोइ [वे हैं] इस पद में अस. प्रत्यय के परे रहते अदस् शब्द को ओर यह मावेश किया गया है। अथवा-२-अभूमि पृष्य [उन को पूछो] ऐसी व्याख्या होने पर अमूनि को 1.सूत्र का चतुर्थ श्लोक ।
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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