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________________ १३८ प्राकृत-व्याकरणम् ★ चतुर्थपादः (ईर ) यह श्रादेश किया गया है। संसने का दर्शने यह रूप भी होता है, २६ वें सूत्र से प्राथ स्वर को अनुस्वारागम, ९७८ वे सूत्र से दकार को तकार, ३५० वें सूत्र से रेफलोप और ९८० वे सूत्र से शकार को सकार हो जाता है । - पैशाची भाषा में यादृश इस जैसे शब्दों के 'ह' इस अवयव की ति यह प्रदेश होता है। जैसे - १ - यादृशः यातियो (जैसा), २- ताहश: तातिसो (सा), ३ - फोहराः के तिसो ( कैसा ), प्रजातिसो ४- ईदृश: ऐतिसो ( ऐसा ), ५ - भवादृशः सवातियो ( प्राप जैसा), ६--अन्यादृश: श्रम्हातिसो (हमारे [ श्रन्य ( दूसरे ) जैसा ]. ७ - पुष्मादृशः युद्धातियो (तुम्हारे जैसा), ८ - अस्मादृशः श्रु जैसा), यहां पर है के स्थान में ति यह मादेश किया गया है । EGE - पंशाची भाषा में इच् और एच् इन दोनों प्रदेशों के स्थान में ति यह आदेश होता है । जैसे - १ - उद्द्वाति वसुधाति ( वह ऊर्ध्व गमन करता है।, २ भवति भोति (वह होता है), ३-नप्रतिमेति ( वह ले जाता है), ४ – बाति तेति (वह देता है), यहां इच की ति आदेश किया गया है। ६० पैशाची भाषा में प्रकार से परे जो इ और एच हैं, इनके स्थान में ते तथा सूत्रोक्त चकार से ति यह आदेश होता है । जैसे- १ - सपतिलपते लपति ( वह स्पष्ट बोलता है), २-वास्ते - अच्छते, प्रच्छति ( वह बैठता है), ३-पद्धति गच्छते गच्छति ( बह जाता है), ४- रमते रमते, रमति (वह कीड़ा करता है), यहां पर अकार से परवर्ती इ और ए को से और तिथे द्रो प्रदेश किए गए हैं। प्रश्न उपस्थित होता है कि प्रस्तुत सूत्र में छात् (प्रकार से यह पद क्यों पढ़ा गया? इसको - नयति ग्रहण करने का क्या उद्देश्य है ? उत्तर में निवेदन है कि-- १ भवति होति (वह होता है), २नेति ( वह से जाता है) आदि अकारान्त-भिन्न धातुओं से परे आए इच् और एच को ते तथा ति ये प्रदेश न हो जाएं, इस दृष्टि से सूत्रकार ने आत् इस पद का उल्लेख किया है। TER-पैशाची भाषा में भविष्यत् कालीन इस् मौर एक के स्थान पर एथ्य का ही आदेश होता है, स्सि का आगम नहीं हो पाता। जैसे - तां दृष्टा चिन्तितं राज्ञा का एषा भविष्यति ?==तं तद्भून चिन्तितं रम्ना का ऐसा हुवेय्य ? ( उसको देख कर राजा ने सोचा, यह कौन होगी ?) यहां पर एच् के स्थान में यह आदेश किया गया है। यहां पर ९४६ वें सूत्र से भविष्यदर्थक प्रत्यय के आदि में स्लि 'का श्रागम होना था किन्तु प्रस्तुत सूत्र ने उसका निषेध कर दिया । ६६२ -- पैशाची भाषा में प्रकार से परे उस प्रत्यय के स्थान में डित् ( जिस में डकार इत् हो ) आतो और आसु ये दो यादेश होते हैं। जैसे १- तावत् च तथा दूरादेव दृष्टः तावच तीए तूरातो, तूरातु य्यैव तिट्ठो (और तब तक उस ने दूर से हो देखा), २-त्वत्-तुमातो, तुमातु (तुझसे), ३मंद ममातो, समातु (मुक्त से) यहां पर इसि प्रत्यय को डालो और तु ये दो आदेश किए गए हैं। ९६३ - पैशाची भाषा में टा-प्रत्यय के साथ तद् और इदम् इन शब्दों के स्थान में नेन और स्त्रीलिङ्ग में नए यह आदेश होता है । जैसे- तत्र च तेन कृतस्नानेन तत्थ समेत कत-सिनानेन (और स्नान किए हुए उस पुरुष ने वहाँ पर ) स्त्रीलिङ्ग का जवाहर पूजितश्च तथा पाप-कुसुम-प्रवानेन पूजितो व नाए पातमा कुसुम-प्पानेन (और उस देवी के द्वारा पांवों के आगे कुसुमों के समर्पण से पूजिस सम्मानित ) यहां पर पुल्लिङ्ग भीर स्त्रीलिङ्ग में टा प्रत्यय के साथ इदम् शब्द के स्थान में मेन और नाए ये आदेश किये गये हैं । प्रस्तुत सूत्र में "टा (टा प्रत्यय के साथ ) " यह पद पढ़ने का क्या उद्देश्य हैं ? इस प्रश्न का समाधान करते हुए वृत्तिकार फरमाते हैं कि-- एवं चिन्तयन् गतः स तस्याः समीपस् एवं चिन्तयन्तो गतो सो ताए समीपं (इस तरह सोचता हुआ वह उस देवी के निकट गया) बादि उदा --
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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