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________________ अ * प्राकृत-व्याकरणम् * चतुर्थपादा विकल्प से होता है। जैसे--१-रामा लपितम्-राचित्रा लपितं प्रादेश के प्रभावपक्ष में रऊआ लपितं (राजा ने कहा), २-राज्ञो बनम राचिनो,धन,रयो धन (राजा का धन), यह रूप होता है । वृतिकार फरमाते हैं कि पेशाधीभाषा में 'ज्ञ' को ही 'ज' यह पादेश होता है, किसी अन्य वर्ण को नहीं। जैसे-राजा-राजा (नृप) यहां पर श का प्रभाव था, अतः यहां 'S' यह आदेश नहीं हो सका। ९७६-पैशाचीभाषा में न्य और प्य इन संयुक्त वर्णों के स्थान में 'उत्र' यह प्रादेश होता है। जैसे-१-कन्यका कत्रका (लड़की), २-अभिमन्यु:-अभिमन्यु (अर्जुन का पुत्र), ३~-पुण्यकर्मापुनकम्मो (पुण्य कर्म-पवित्र काम करने वाला), ४-पुण्याहम्-पुत्राहं (पुण्य रूप दिन) यहां पर न्य और भय को 'ब' यह प्रादेश किया गया है। ९७७-पैशाची भाषा में कार को नकारादेश होता है। जैसे-१-गुण-गण-युक्तः = गुन-गनयुत्तो (गुणों के समुदाय से युक्त),र-गुणेन=सुनेन (शुष्प से),यहां पर णकार को नकार किया गया है। ७-पैशाची भाषा में तकार.और दकार के स्थान में सकार होता है। जैसे-तकार के - दाहरण-१-भगवती भगवती (ऐश्वयेशालिनी, भगवत्स्वरूपा), २-पार्वती पन्नती (गणेश जी की जननी,शिव-पत्नी),३-शतम् सतं (१०० की संख्या), दकार के उदाहरण-१-मदन-परवशःमतन-परवसो (कामदेव के अधीन), २-सदनम् - सतनं (घर),३-दामोदरःतामोतरो (श्रीकृष्ण), ४–प्रदेशः= पतेसो (देश का एक भाग), ५-ववनकम् -वतन (मुख), ६-भवतु-होतु (वह हो), ७-रमताम-रमत (वह क्रीडा करे), यहां पर तकार तथा दकार कोतकारादेश किया गया है यहां प्रश्न उपस्थित होता है कि तकार के स्थान में तकार का विधान करने का क्या प्रयोजन है ? उत्तर में निवेदन है कि तकार के स्थान में भी जो तकार का विधान किया गया है, इससे तकार के स्थान में समादेशों का निवारण किया गया है। जैसे-...साका यहां पर २०६ सत्र से तकार को डकार होना था, इसी प्रकार-वेतसः. यहां पर वैतस के प्रकारको ४६ वें सत्र से इकार होने पर २०७२ सूत्र से तकार को उकारादेश की प्राप्ति थी किन्तु प्रस्तुत सष ने तकार के स्थान में तकारादेशका विधान करके डकारादेश नहीं होने दिया पैशाचीभाषा में पताका का पताका (झण्डी) तथा वेतसः का तिसो (बैत) यही रूप रहता है। ___९७६-पंशाचीभाषा में लकार को लकारादेश होता है । जैसे-१-शोलम्सील (स्वभाव), .२...--कुलम् मा कूल (कूल, खानदान), ३---सलिलम--सलिलं (पानी), ४---कमलमकमल (कमल), यहां पर लकार के स्थान में लकारादेश किया गया है। प्रश्न उपस्थित होता है कि लकार के स्थान में लकारादेश करने की क्या नावश्यकता थी ? उत्तर में निवेदन है कि प्राकृतभाषा में २५५ ३ सूत्र से लकार को रेफ और २५६ वें एवं २५७ वें सूत्र से लकार कोणकारादेश होता है, परन्तु पैशाची भाषा में ऐसा नहीं होता,मतः यहाँ लकार के स्थान में लकारादेश का विधान किया गया है। प्रस्तुत में शीलम् आदि जो उदाहरण दिए गए हैं, इन के लकार को प्राकृतभाषा के किसी सूत्र से कोई आदेश नहीं होता, तथापि इन का जो उल्लेख किया गया है, इस का कारण- "सूत्र को पर्यन्यवत् प्रवृत्ति होती है" यह सूचित करना ही समझना चाहिए। -पैशाचीभाषा में शकार और कार को सकारादेश होता है। शकार के उदाहरण, जैसे-१-शोभते सोभति (बह शोभा पाता है), २-शोभनम् = सोभनं (सुन्दर), ३-शशी-ससी (चन्द्र), ४--शकःसक्को (केन्द्र महाराज, पहले देवलोक के स्वामो), ५---शङ्ख-सजो (शंख) -
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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