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________________ [ ठ ] करते हैं । कारण स्पष्ट है। अपठित वर्ग या जनसाधारण किसी साहित्यिक भाषा का न तो स्वयं प्रयोग करता है, और नाँहीं उसे समझ सकता है । श्रसः जनसाधारण के व्यवहार को सम्पन्न करने वाली जो कथ्य भाषा ( बोलचाल की भाषा) होती है, वह पाहित्य की परिमार्जित भाषा से सर्वथा स्वतंत्र पर अलग भाषा होती है। शिक्षित या पठित लोग भी व्यवहार जगत में जनसाधारण से वार्तालाप करते हैं तो वे उसी कथ्य भाषा का ही प्रयोग करते हैं। वेदों के समय में भी ऐसी कथ्य भाषा प्रबलित थी । जिस समय लौकिक संस्कृतभाषा चल रही थी, उस समय भी जनसाधारण में कथ्य भाषा पाई जाती थी | नाटक-जगत इस सत्य का पूर्णतया पोषण करता है । नाटक-शास्त्रों के परिज्ञाता विद्वान जानते ही हैं कि वहां पर संस्कृत भाषा के साथ-साथ कथ्य भाषा बोलने वाले पात्र भी दृष्टिगोचर होते हैं । यह कथ्य भाषा प्राकृत भाषा हो यो । श्रतः यही माना शास्त्रीय और तर्क-संगत है कि सर्व भाषाओं की जननी प्राकृतभाषा है। प्राकृत भाषा ने संस्कृत भाषा को जन्म दिया है। आज कल के भाषा-तस्वज्ञों ने इसी मान्यता का समर्थन किया है। भारत के प्राचीन भाषातत्वज्ञों में भी इसी सिद्धान्त काका जाता है अलंकार में एक श्लोक starrer में ख्रिस्त की ग्यारहवीं शताब्दी के एक जैन विद्वान मुनिवर श्री नमिलिखते हैं " सकल जन घ्याकरणाविभिरना हितसंस्कारः सहज वचनव्यापारः प्रकृतिः, तत्र भवं सेव वा प्राकृतम् । 'आरिस वय सिद्ध देवाखं अनुभागही वाणी' इत्यादिवचना वा प्राक् पूर्वं कुतं प्राक्कतं बाल महिलादि-सुबोधं सकलभाषानिबन्धनभूतं वचनमुच्यते, मेघनिर्मु - जलमिवैकस्वरूपं तदेव च. देशविशेषात् संस्कार करणापत्र समासाक्तिविशेषं सत् संस्कृतानु तर विभेदानाप्नोति । अतएव शास्त्रकृता: प्राकृतमा निविष्टं तदतु संस्कृतादीनि । पाणिन्या दिव्याकरणोदितशब्वलक्षणेन संस्करणाद संस्कृतमुध्यते । अर्थात् प्रकृति शब्द का अर्थ है- लोगों का व्याकरण श्रादि के संस्कारों से रहित स्वाभाविक वचनव्यापार उससे उत्पन्न अथवा वही वचनव्यापार प्राकृत कहलाता है । अथवा 'प्राक्-कृत' पर से प्राकृत शब्द बना है । 'आक्कृत' का अर्थ है-पहले किया गया। बारह अङ्गग्रन्थों में प्यारह ग्रन्थ पहले कथन किए गए हैं और इन ग्रन्थों को भाषा आर्ष वचन में (सूत्र में) अर्धnist कही गई है* | यह अर्ध मागधी भाषा बालक तथा महिला आदि को सुबोध (सहजगभ्य) है और यह भाषा सकल भाषाओं का मूलस्रोत मानी जाती है। यही अर्धमागधी भाषा प्राकृत कहो जाती है। यही प्राकृत मेघ से विनिर्मुक्त जल की तरह पहले एक रूप में होने पर भी, देश-भेद से और संस्कार करने से भिन्नता को प्राप्त करता हुआ संस्कृत भादि भवान्तर विभेदों में परिणत हो गया है। अर्थात- अर्धमागधी प्राकृत भाषा से संस्कृत भाषा तथा अन्यान्य भाषाओं की उत्पत्ति हो पाई है। इसीलिए मूलग्रन्थकार (रुद्रट) ने प्राकृत भाषा का पहले और संस्कृत आदि भाषाओं का बाद में निर्देश किया है। पाणिनि आदि व्याकरणों में बताए हुए नियमों के अनुसार संस्कार पाने के कारण प्राकृतभाषा संस्कृत भाषा कही जाने लगी है। एक प्रश्न का समाधान --- ऊपर की पंक्तियों में जो बताया गया है, उसका सारांश यही है कि संस्कृतभाषा प्राकृत भाषा *बारहवाँ अङ्ग-ग्रन्थ दृष्टिवाद है, इस में चौदह पूर्व (प्रकरण ) थे। यह अङ्ग-ग्रन्थ संस्कृतभाषा में था। यह प्राकल उपलब्ध नहीं है।
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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