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________________ S अपनी बात SSS.. SSSS प्राकृत शब्द का अर्थ--- प्राकृत-व्याकरण इस शब्द में प्राकृत और व्याकरण ये दो पद हैं। प्राकृत शब्द का अर्थ हैएक प्राचीन स्वतंत्र भाषा,जिस का प्रयोग जैन साहित्य में तथा संस्कृत के नाटकों एवं मन्यान्य ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। व्याकरण उस शास्त्र का नाम है जिस के द्वारा भाषा के शब्दों, उनके रूपों और प्रयोगों प्रादि का ज्ञान उपलब्ध किया जाता है। प्राकृत भाषा का व्याकरण प्राकृत व्याकरण कहलाता है। प्राकृत शब्द को लेकर अनेकों अर्थ-विचारणाएं उपलब्ध होती हैं। उन में से कुछ एक निवेदन करता हूं : १-प्रकृतिः संस्कृतं, तत्र भवं तत आगतं वा प्राकृतम् (हेमचन्द्र-कृत प्राकृत-ध्याकरण ८1१1१), २-~-प्रकृतिः संस्कृतम्, तत्र भवं प्राकृतमुच्यते (प्राकृतिसर्वस्व ११), ३. प्रकृतिः संस्कृतं तन्न भवत्वात प्राकृतं स्मृतम् (प्राकृत-चन्द्रिका), ४... प्राकृतेः संस्कृतायास्तु विकृतिः प्राकृती मता (षड़ भाषा-चन्द्रिका पृष्ठ ४), ५--प्राकृतस्य तु सर्वमेव संस्कृत योनिः (वासुदेवकृत कर्पूरमंजरीसंजीवनी टोका ५।२) । प्राकृत शब्द की इन सब व्युत्पत्तियों का जब गंभीरता से परिशीलन करते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राकृत शब्द प्रकृति शब्द से निष्पन्न हुपा है और प्रकृति का अर्थ है...संस्कृत भाषा । इस अर्थ-विचारणा से यह स्पष्ट हो जाता है कि संस्कृत भाषा प्राकृत भाषा की जननी है । अर्थात् संस्कृत भाषा से उत्पन्न होने वाली भाषा प्राकृत भाषा कहलाती है। प्राकृत शब्द का जो अर्थ ऊपर की पंक्तियों में संसूचित किया गया है । यह अर्थ कोषकारों के मत में प्रामागिका नहीं माना जाता । क्योंकि प्राकृति शब्द का किसी भी कोषकार ने 'संस्कृत भाषा' यह अर्थ नहीं लिखा है। कोषकार तो प्रकृति शब्द को मुख्यतया स्वभाव अथवा जनसाधारण इस अर्थ का अभियाजक स्वीकार करते हैं। इसीलिए प्राकृत शब्द का उनके मन में अर्थ होता है -प्रकृत्या स्वभावेन सिद्ध प्राक्तम् । अथवा प्रकृतीनां साधारण-जनानामिदं प्राकृतम् । अर्थात्-.--जी भाषा प्रकृति (स्वभाव) से सिद्ध-निष्पन्न हो वह प्राकृत भाषा कहलाती है। प्राचीन युग में प्राकृत भाषा जनजीवन की मातृभाषा थी, अतः स्वाभाविक या अकृत्रिम मानो जाती थी। संस्कृतभाषा व्याकरण की संस्कार-रूप कृत्रिमता (बनावटीपन) से परिपूर्ण होने के कारण कृत्रिम या अस्वाभाविक स्वीकार की गई है, किन्तु प्राकृतभाषा की ऐसी स्थिति नहीं थी, जन-जीवन को यह स्वभाव से सम्प्राप्त होती है इसलिए इसे स्वाभाविक कहा गया है। अथवा प्रकृति-जनसाधारण (साधारण-अपठित जन-जीवन) की भाषा प्राकृत भाषा कहलाती है। क्या बालक क्या बालिका, क्या युबक क्या युवती, क्या स्त्री और क्या पुरुष सभी प्राकृतभाषा का उपयोग करते हैं। किसी पाठशाला में शिक्षण प्राप्त किए बिना ही इसे बोलते हैं, अत: इसे जन-साधारण की भाषा कहा गया है। इस प्राकत भाषा से ही संस्कृत मादि भस्य भाषाओं की उत्पत्ति होती है, इस सत्य को भाषा-तत्व के सिद्धान्त भो सहर्ष स्वीकार S AHYAAAAAAAH ours " ""
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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