SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०१ चतुर्षपादः * संस्कृत-हिन्दी-टीकाइयोपेतम् * ६३५-शौरसेनी भाषा में प्रामन्त्रण सम्बन्धी सिप्रत्यय परे रहने पर नकार को विकल्प से मकारादेश होता है। जैसे-१-भो राजन् ! - भो रायं ! (हे राजन् !), २--भो विजयवर्मन ! भो विप्रयवम्म ! (हे विजयवर्मन् !, विजय-वर्मा किसी व्यक्ति का नाम है, यह उस का सम्बोधन है), ३-- सुकर्मन् ! =सुकम्म ! (हे अच्छे कर्म करने वाले !), ४- भगवन् ! भयवं ! (हे भगवन् !), ५-कुसुमाधुष!-कुसुमाउह ! (हे कुसुमायुधा, अर्थात् जिस के कुसुम-पुष्प ही प्रायुध-शस्त्र हैं, कामदेव !), ६भगवन् ! तीर्थ प्रसंप- भयवं ! तित्थ पवतेह (हे भगवन् ! श्राप तीर्थ की प्रवृत्ति करो, लोकान्तिक देव तीर्थकर भगवान से निवेदन करते हैं कि प्राप तीर्थ (धर्म) की स्थापना करने की कृपा करें), प्रादेश के प्रभावपक्ष में-सकललोक-अन्तश्चारिन् ! भगवन हसवह!-सयल-लोन-अन्तेयारि भयवं! हुदवह ! (सकललोक में विचरण करने वाले !, हे भगवन् ।, हे अग्निदेव !) ऐसा रूप होता है । यहाँ पर नकार को मकारादेश नहीं किया गया। ६३६ -- प्रस्तुत सूत्र में "आमन्ये" (आमंत्रण सम्बन्धी) इस पद की निवृत्ति हो जाती है । अथति-यही 'आमन्त्रणसम्बन्धी' यह पद जोड़ने की आवश्यकता नहीं है। शौरसेनी भाषा में भवद् पौर भगवद् इन शब्दों के नकार को सिप्रत्यय परे होने पर मकारादेश होता है। जैसे-१-किमत्र मवान् हरयेम चिन्तयति-कि एत्थ भवं हिदएण चिन्तेदि ? (क्या आप इस सम्बन्ध में हृदय से विचार कर रहे हैं ?), २-एतु भवान् =एदु भवं (ग्राप जाएं), ३...श्रमणः भगवान महावीरः-समणे भगवं महावीरे (श्रममा तपस्वी. भगवान महावीर); ४-प्रज्वलितो भगवान हुताशनः=पज्जलिदो भसव हुदासणो (जाज्वल्य मान भगवान् अग्नि-देव अथवा भगवान् श्रग्निदेव प्रज्वलित हो रहे हैं), यहाँ पर भवद् और भगवद् शब्दों के नकार को मकारावेश किया गया है। बलाधिकार के कारण २ सूत्र से उक्त दोनों शब्दों से भिन्न पदों के नकार को भी मकारादेश हो जाता है। जैसे ----मधमान पाकशासन:-मघवं पागसासरणे (मधवान् और पाकशासन ये दोनों इन्द्र के नाम हैं), २-सम्पादितवान् शिष्यः संपाइयवं सीसो (काम को पूर्ण करने वाला शिष्य), ३-- कृतवान्क यवं (वह करने वाला है), ४ --करोमि-करेमि (मैं करता है), च और ५--करिष्यामि-काहं (मैं करूंगा) यहां मघवाद आदि पदों के नकार को प्रस्तुत सत्र से मकारादेश नहीं हो सकता था किन्तु बहलाधिकार से नकार को मकार बना दिया गया है। करेमि और करिष्यामि का सम्बन्ध कृतवान पद से समझना चाहिए । जैसे कृतवान करेमि (मैं कृतवान् (जिसने काम कर रखा है) करता हूँ। और कृतवान् करिष्यामि (मैं कृतवान् करूंगा)। यहां पर बहुलता से प्रस्तुत सूत्र को प्रवृत्ति की गई है। ९३७--शौरसेनी भाषा में के स्थान में 'स्य' यह मादेश विकल्प से होता है। जैसे----- मार्यपुत्र ! पर्याकुलीकृताऽस्मि अय्यउत! परयाकुलीकम्हि (हे *मार्यपुत्र ! मैं बुरी तरह से दुःखी कर दी गई है), २...अर्यः सस्यो (दिवाकर प्रादेशक प्रभाव-पक्ष में-१-आर्यःप्रज्जो (श्रेष्ठ), २फ्याकुलः-पूजाउला (दु:खो), ३.-कार्य-परश: कज्जपरयसो (कार्य के कारण पर-वश (पराधीन) बना हुमा), ये रूप बनते हैं । यहाँ पर प्रस्तुतसूत्र से 'मैं' को '' यह पादेश नहीं किया गया । ३८-शौरसेनो भाषा में थकार के स्थान में विकल्प से धकार का प्रादेश होता है । जैसे--- *संतशम्दार्थ-कौस्तुभ नामक कोष में प्रार्यपुत्र के अनेकों मर्थ लिसे है...-१-प्रतिष्ठित जन का पुत्र, ३-दीक्षापुर का पुष, ३-सम्मानित, ४-सम्मानसनक संज्ञा, अपने पति के लिए पत्नी की प्रबवा अपने राबा के लिए उसके हेमाविकी सम्मानजनक संज्ञा
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy