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________________ Amawat चतुपादा ★ संस्कृत-हिन्दी-टोकाद्वयोपेतम् * सू० रेफलोपे, ४ सू० तकारस्थाकारस्य नाकारे, १७७ सू० दकारलोपे, ५७८ सू० इकारदीधे, १३१५३७१. सू० सेरिकारस्य लोपे,११ सू० सकारस्य लोपे असावेई इति रूप प्लाकृतभाषायां निष्पद्यते,परन्तु शौरसेन्यान्तु ९३१ सू. तकारस्य दकारे अन्दावेशी इति भवति । एवमेव युवतिजनः । युवतिश्चासी जनः । युति-जन+सि । २४५ सू० यकारस्य जकारे,९३१ सू० तकारस्य दकारे,२२८ सू० नकारस्थ णकारे, ४९१ सू० सेडों:, डिति परेऽन्त्यस्वरादेर्लोपे जुवाविजएगो इति भवति । मनःशिला 1 मनस्-शिला+सि। २२८ सू० नकारस्य णकारे, ११ सू० सकारलोपे, २६० सू०:शकारस्य सकारे, सेर्लोप मणसिला इति भवति । एषु प्रयोगेषु शौरसेनीभाषानियामकः सूत्रैरपि कार्य विहित परस्तु लदतिरिक्त कार्य प्राकृतभाषानियाभः सूत्रः सम्पादितमतएव वृत्तिकारणोक्तम्---शौरसेन्यामिह प्रकरणे यत्कार्यमुक्तं सतोमर पधारलेमा प्राकृत-भाषा-बोव भवति । इति शौरसेनीभाषाविवेचनम् । प्राचार्य श्री हेमचन्द्रेण ९३१. सू. बादारभ्य ९५५ सूत्र-पर्यन्तं शौरसेनी-भाषा-विधिविधानं निरूपितम्, ९५७ सूत्रतः तस्य समाप्तिर्जायतेस्तएवोच्यते यच्छौरसेनी-भाषा-विवेचनं समाप्तम् । यदा मूलग्नन्थे शौरसेनी-भाषा-प्रकरणं समाप्तिमगमतदा बालमनोरमाख्यायां टीकायामपि शौरसेनीभाषा-प्रकरणं समाप्तिमेति । शोगानेती-गिरा बीका, नुर्ण बालमनोरमा ! प्रात्माराम गुरुं ध्याल्वा, मुनिज्ञानेन निमिता ॥१॥ * समाप्तं शौरसेनी-भाषाया विवेचनम् * * अथ शौरसेनी भाषा विधि* . महावीर भगवान जिन, जगतारक अखिलेश, .. . . मङ्गलकारी नाम है, सुखदायक परमेश । बन्दन कर श्री वीर को, मन में रख कर ध्यान, गुरुवर प्रात्मा राम का, करता है गुणगान । गुरुचरणों की शरण ले, नतमस्तक "मुनि ज्ञान", भाषा शौरसेनी का, लिखता है व्याख्यान । हैमशब्दानुशासन के पाठ अध्याय हैं, पहले सात-मध्याथों में संस्कृत-भाषा के विधिविधानों का उल्लेख किया गया है। शेष पाठवें अध्याय में, १-प्राकृत, २- शौरसेनी, ३--- मागधी, ४-पैशाची, ५-चलिका-पैशाचिक और ६-अपभ्रंश इन छ: भाषाओं का निरूपण कर रखा है। प्रारम्भ के तीन पादों में तथा चतुर्थपाद के २५६ सूत्रों में प्राकृत-भाषा के स्वरूप का परिचय कराया गया है। इसके अनन्तर प्राचार्य श्री हेमचन्द्र शौरसेनी भाषा के सम्बन्ध में जानकारी देने लगे हैं। प्राचीनकाल में शौरसेन (*महाराज शूरसेन का राज्य, प्राधुनिक प्रजमण्डल, जिसकी राजधानी शूरसेन-मथुरा थो) प्रदेश में (मथुरा के पास-पास) यह भाषा बोली जाती थी। कोषकारों के कथनानुसार खड़ी बोली हिन्दी के निर्माण में शोरसेनी *देखो बृहत्-हिन्दी-कोष । wavim
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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