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________________ प्राकृत चिन्तामणि प्रन्थकार कृत प्रशस्ति | १०७ प्राकृत चिन्तामणि ग्रन्थकार कृत प्रशस्ति भगवान श्री व मान स्वामी एवं गणधर गौतम स्वामी को तथा जिनवाणी (सरस्वती) को नमस्कार करके प्राकृत सूत्र पंचाध्यायी के निर्माण का हेतु बताना चाहता हूँ । (१) सन्त जन सम्यक् विवेक बुद्धि से यह जानते हैं, कि जगत में हित क्या है, अहित क्या है ? इस लोक-परलोक में कल्याणकारी क्या है ? (२) इस जग में अनन्त अनन्त पदार्थ है, किन्तु सभी उपादेय नहीं है। जिससे पुरुषार्थ - आत्मार्थसिद्ध होता है वही वांछनीय है । (३) (४) संसार में धर्म, अर्थ, काम रूप पुरुषार्थ भौतिक सुख अवश्य प्रदान करता है, किन्तु लोकोत्तर सुखों का दाता और कर्म बन्धन से मुक्ति प्रदाता तो 'मोक्ष' नामक चतुर्थ पुरुषार्थ ही है । इनमें मोक्ष का मार्ग है - सम्यग् ज्ञान-दर्शन तप एवं चारित्र । ये चारों सम्मिलित रूप में ही मोक्ष मार्ग है | सम्यग् ज्ञान इनमें प्रधान - प्रमुख है । (2) ज्ञान प्राप्ति का प्रधान कारण है-शास्त्र ! शास्त्र प्रायः संस्कृत एवं प्राकृत भाषा निवद्ध है । अतः जिज्ञासु जनों को दोनों भाषाओं का अध्ययन अपेक्षणीय है । (६) बृद्धिमान जनों के लिए प्रायः संस्कृत भाषा में शास्त्र लिखे जाते हैं । परन्तु सामान्य मानवों को बोध देने के लिए प्राकृत भाषा में शास्त्र प्रकाशन भी जरूरी है । (७) प्राकृत भाषा रूप शास्त्र - दीपक के प्रकाश में स्त्री-बालक-मन्दज्ञानी आदि सामान्य जन भी सुखपूर्वक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । अतः मैं प्राकृत भाषा में व्याकरण का विस्तार करता है। (=) जिस प्रकार दीपक माला समूचे लोक में चारों तरफ प्रकाश फैलाती है, उसी प्रकार जिनेन्द्रदेव द्वारा उपदिष्ट त्रिपदी – जोकि प्राकृत भाषा में है, समस्त जगत में ज्ञान का प्रकाश फैलाती है। (९-१०) प्राकृत भाषा का ज्ञान कराने के लिए अनेक कृपालु आचार्यों ने प्राकृत व्याकरण आदि का निर्माण किया है । अनेक नवीन विद्वान तत्त्र विज्ञोनें भी प्राकृत दीप का प्रकाशकर जगत का अज्ञानान्धकार दूर करने का प्रयास किया है । (११) सुप्रसिद्ध आदि कवि महर्षि बाल्मीकि जो रामायण के जन्मदाता ( सर्जक ) थे उन्होंने प्राकृत भाषा का महान व्याकरण बनाया । उसका यदि कोई प्रमाण देखना चाहें तो प्राकृतरत्नदीपिका की प्रस्तावना में देख सकते हैं। (टिप्पणगत श्लोक १०६ परदेखें ।) (१२-१३) प्राकृत भाषा के अनेक खण्ड काव्य, व्याकरण आदि भी प्रसिद्ध है । वररुचिकृतप्राचीन प्राकृत व्याकरण तथा आचार्य श्री हेमचन्द्र रचित नवीन प्राकृत व्याकरण भी प्रसिद्ध है । (१४१५ ) प्राचीन एवं नवीन मनीषियों द्वारा रचित शास्त्रों का अध्ययन कर घासी मुनि (मैंने ) प्राकृत सूत्र पंचाध्यायी (नवीन कृति) का जनता के उपकार हेतु निर्माण किया है। (१६) यह प्राकृत -- सामान्य मानवों के लिए सरलता से समझो जा सकेगी – ऐसी मेरी कामना है, इसी कारण मैंने यह प्रयत्न किया है । (१०) इसमें सर्वप्रथम - प्राक्रुद्ध भाषा व फिर शौरसेनो, उसके पश्चात मागधीभोपा. देशाची भाषा उसके पश्चात् चूलिका पशाचो पश्चात् अपभ्रंश भाषा का वर्णन किया गया है । (१८-१९ )
SR No.090363
Book TitlePrakrit Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year
Total Pages113
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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