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वुडरण लागी पारणी हाट, भरगहि वाणिए पाडी पाठ । नयर लोग सबु कउतगि मिलिउ, इतडउ करिसु तहां ते चलिउ ॥ ३६६॥ प्रद्युम्न का मायामयी मेढा बनाकर वसुदेव के महल में जाना फुरिण तहि मयण मित्र चितय, भाया रूपी मेढो कियउ । पहुतउ वसुदेव तरणौ खंधार, कठीया जाइ जरणाइ सार ॥ ३६७॥
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तर शुदिउ वोलह सतभाउ, वेगउ तहा भीतरि हकरोउ ।
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कठिया जाइ संदेसउ कहिउ ने मैो सीन
गडक छोटो मैो घरी न संके, विहसि राउ तव छाडी टंक |
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अइ || ३६६ ॥
तउ मयख वाहु कहइ, बात एम कौ कार
(३६६ ) के प्रति में—
कमंडलु भरि चलित बाजारि, करमी पनि कंम
सारि । फूटि कमंडलु नवू तिह चली, लोक उत्तर पुछद्र बेवली ॥ ३७४ ॥ भरतहि वालिए पाडी हाट इतनो करि तहां थी चलिज ॥ ३७४ ॥
पूछह परिहारो पहाट, नगर लोग सब कौलिंग लिउ, प्रति
लूण लागी पाणी हट
भएराहि वालिए पाडी पाठ |
नयर लोग सबु कउतगि मिलिज, इडज करिसु तहा ते चलिउ ॥। ३७१ ।। लोग महाजन कौतिग मिल्यो, इतना करि बाहुडि चाल्यो (ग) ग प्रति
मारि ||३५८ ॥
तब वली ।
वंभरण जाइ जरगाईसार, गय वंभरण चउहाँ फारि कमंडलु नदी हुई चली नगर उनी वोल दूसरा लागउ सभु बाजार, सवह लोग मिलि करहि पुकार ||३५६॥ (३६७) १. मनु (क) बहूडि (ग) मंतु (ख) २. मदिउ (क) मेढा (ख) माटो (ग) ३. के द्वारि ( ग )
(३६८) १. वसुदेव (क) वसुहिउ (ख) वासुदेव ( ग ) २. तिहि ठाइ (ग) ३. सातरिह (ख) वेडा तुद्दह भीतरह कराउ ( ख ) ४. बुलाइ (ग) ५. क्विज ( ख ) चपल (ग) ६. लं भाग बहु (क) ले मींदा उह भीतर गयो ( ख ग )
( ३६ ) १. काडिज ( क ) छोडि (ख) छूटा (ग) २. संघ (क) संग ( ग ) ३. विहसि रायणि प्राडी राक (क) विहसि राय पुणु कटो ढंग (ख) बिसि राय तब बोनो ढंग (गु) ४. प्र ( क ग ) मूलपाठ आहे