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प्रद्युम्न का वृद्ध ब्राह्मण का भेष बनाकर
सत्यमामा की बावड़ी पर पहुंचना फुरिण मयरद्धउ बंभणु भयउ, कर धोवती कमंडलु लयर। लाठी टेकतु चलिउ सभाइ, खरण वावडी पहूतउ जाई ॥३६०॥ उभो भयउ जाइ सो तहा, सतिभामा की चेरी जहा। भूखउ वामणु जेम्वरणु करहु, पारिउ पियउ कमंडलु भरहु ।।३६१॥ फुणि चेडी जंपइ तखणी, यह वापी सतिभामा तणी । इणि ठा पुरिषु न पावइ जाण, तू कत पायउ विप्र अयाण ॥३६२॥ तउ वंभण कोपिउ तिणकाल, किन्हहू के सिर मूडे हि वाल । किन्हहू नाक कान ते खुटी, फुणि वसरणु पइठउ वावड़ी ॥३६३।।
विद्या बल से बावड़ी का जल सोखना फुणि तहि बुधि उपाइ घणी, सुइरी विद्या जल सोग्रणी । पूरि कमंडलु निकलिउ सोइ, सूकी दावडी रीति होइ ॥३६४॥
कमंडलु के जल को गिरा देना सूको देखि अचंभी नारि, गो वाभण चोहटे मभारि । धाइ लड़ी वाहुडी कर गयउ, फुलि कमंडलु नदी होइ वहउ ॥३६५।।
(३६०) १. तलि (ग) २. प्राइ (क ग)
(३६१) १. वावडी (क) चेडी (ल ग) २. गोमण 1) जेमणु (ख) जीवाणु - (ग) ३. पारणी पिए (क) पारणी वेट (ग)
(३६२) १. ला तणी (क) २. इहि ठा (ख ग) ३. प्रायड (क)
(३६३) १. तिणि काल (फ) तहि पाल (ख) हिताल (ग) २. किण्हहकन (क) किन्हही के (४) तिन्ह के (ग) ३. वास (कन ग) ४. किनर (क) सबै (ग) ५. खुरी (क ख ग) इव (क) ६. बाठावर (ग) मूसप्रति में 'तिताल' पाठ है
(३६४) १. घुमरो (क) सुमरी (त्र) संवरी (ग) २. वाइ (ग) (३६५) १. चउटे (उ) ते पहती सतभामा वारि (ग) २. फूटि (ख)