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________________ ( ५३ ) कनकमाला द्वारा अपना विकृत रूप करना મ 3 ४ करण्यमाल तव धसक्यो होयउ, मोसिह कूडकूडीया कीयउ । k ६ ७ द इकु तउ लाज भइ मत टल्य, अवरू हाथि लइ विद्या चलिउ || २४६ || 6 4 २ 3 करणयमाल त बिसमउ धरइ सिर कूटइ कुकुवारउ करइ । I ५ 5 5 उर थणहर मह फारह सोइ, केस छोडी बिलंघन होई || २५० 2 इक रोगश भण करह पुकार, कल्चर रा जोगी सार । २ कुमर पांच पहुते जाइ, कनकमाल पह बइठे आइ ।। २५१ ।। १ कालस ंबर सउ कहउ सभाऊ, इहि दिषि पालक कीयउ उपाउ । ܀ Y घरम पूत करि थापिउ सोइ, अब सो मोकहु गयो विगो || २५२ || कालसंवर द्वारा प्रद्युम्न को मारने के लिये कुमारों को भेजना निसुरिण बयण नरवई परजलीउ, जागौ धौउ अधिक हुतास परिउ । 3 E कुवर पाचसह लिये हकारि, पर वेगि इहि श्रावहु मारि ॥ २५३ ॥ (२४९) १. धसकैया (ग) असकिउ (ख) २. होया (ग) ३. मोहि स ( क ) हि सिह (ख) मोस्यों (ग ) ४. कूडि जय (ग) ५. व मोहि (क) हकु सहू ( ख ) कुत (ग) ६. गई (ख) ७. मन ढलिङ (क) मनु टालिङ (ख) मधु दलित (ग) ले विद्या हाय ते चलिउ (ग) ८. (२५०) १. तो ( ग ) २. करइ (कख) ३ पीटर ( ग ) ४. शुकवर (क) फुकु भारत ( ख ) अव कूकतज फिरह (ग) ५. नव (क) नह (ख) करि (ग) ६, फाइ (का) पोटड (ग) ७. खोलि (खग) ८ विहलघल (कख) विखलि ( ग ) ( २५१) १ जण सार (क) राजा पासि जरगाव सार ( ग ) (क) पंचसय (ग) २. पंचस (२४२) १. स्यो (क) सिउ (ख) जब वहठ्ठा भाइ ( ग ) २. विशु ( ग ) ३. बालक (ग) पालागी (ख) ४. किल एह उपाव (क) कीयउ उपगार (ख) कीया उपाउ (ग) ५. राखिय ( क ) थापी (ग) ६. चलिउ (ख) गया (ग) (२५३) १. सुखे ( ग ) २ जणू (ख) ३. घृत (क) घिरत ( ग ) ४. वसंतर (क) वासए (ख) वेसंदर (ग) ५. भलिउ (क) पडिङ (ख) टाल (ग) ६. पहि afra सु ७. तुम ( क )
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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