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________________ ( ३३ ) प्रय म्न चरित में राधान्न मुले I -काम याला लक्षण ठीक बैठता है। इसमें घटनाओं का शृखलाबद्ध क्रम है, नाना भावों का रसात्मक अनुभव कराने वाले प्रसंगों का समावेश है। इन सबके मतिरिक्त यह काव्य के श्रोताओं के हृदय में रसात्मक तरंगें उठाने में भी समर्थ है। इसलिये प्रद्युम्नचरित को निश्चित रूप से प्रबन्ध-काव्य कहा जा सकता है। प्रद्युम्नचरित ६ सर्गों में विभक्त है उसमें विरह, मिलन, युद्ध वर्णन, 'नगर वर्णन, प्रकृति-वर्णन एवं इन सबके अतिरिक्त मायावी विद्याओं ' का वर्णन मिलता है। उसका नायक १६६ पुण्य पुरुषों में से एक है। यह अतिशय पुण्यवान् एवं कलाओं का धारी है। वह धीरोदात्त प्रकृति का नायक है। काव्य के प्रवाई को स्थिर एवं प्रमात्रोत्पादक रखने के लिये अवान्तर कथाओं का होना भी प्रबन्ध काव्य के लिये आवश्यक है । अवान्तर कथाओं से पात्रों का चरित निस्वर जाता है और वे पाठकों को अपनी ओर अधिक आकृष्ट कर लेती है। प्रस्तुन काव्य में रुक्मिणीहरण तथा नारद के विदेह क्षेत्र में जाने की घटना, सिंहरथ युद्ध वर्णन, उदधिक्रुमारी का अपहरण, भानुकुमार के विवाह का वर्णन, सुभानु तथा शंबुकुमार का घूत-वर्णन श्रादि कथायें आयी हैं। इनसे 'प्रा म्न चरित' के काव्यत्व की उत्कृष्टता में वृद्धि हुई है। पूरे काव्य में पात-प्रतियात खूब चला है । पाठकों का ध्यान किचिन् भी दूसरी ओर न बँट सके; इसजिये कत्रि ने अपने काव्य में ऐसे प्रसंगों को पर्याप्त स्थान दिया है । स्वयं नायक के जीवन में ही आश्चर्यकारी घटनाओं का बाहुल्य है । धूमकेतु असुर द्वारा उसको शिला के नीचे दबाया जाना, फिर कालसंवर द्वारा उसका बचाया जाना, जसे गुफाओं के दिखाने के बहाने । अनेक विपत्तियों में फंसाना, किन्तु उसका अनेक विशनों के लाभ के साथ । वापिस सुरक्षित निकल आना, सिंहस्थ के साथ युद्ध में विजय-श्री का प्राप्त होना, स्वयं कालसंवर एवं फिर द्वारका में श्रीकृष्ण के साथ भयंकर युद्ध होना एवं उसमें भी विजय लक्ष्मी का मिलना आदि कितने ही प्रसंग उपस्थित होते हैं । अब पाठकों को नायक को विपत्ति में फंसा हुआ देखकर पूर्ण सहानुभूति होती है और जब वह यहां से विजय के साथ निरापद लौटता है तो पाठक प्रसन्नता से भर जाते हैं।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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