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________________ नयरण वयरण कर तेजिहि तारा ( ३२ ) चररिंग जिण वि पंकज आकासि चंद सूर जलि पाडिय | भयाडिय ॥ इसलिये यह कहा जा सकता है कि सारु कवि अपने समय के अकेले हिन्दी कवि हैं जिन्होंने इस प्रकार का प्रबन्ध काव्य लिखने का प्रयास किया था। हिन्दी साहित्य में प्रद्युम्न चरित का स्थान : 'प्रथम्न चरित' हिन्दी भाषा में अपने ढंग का अकेला काव्य है । वह पुरानी हिन्दी एवं नवीन हिन्दी काव्यों की मध्य की कडी को जोडने वाला एक श्रेष्ठ काव्य कहा जा सकता है। चउपई, एवं वस्तुबंध- छन्द में लिखा जाने वाला यह यद्यपि पहिला काव्य नहीं है किन्तु साहित्यिक दृष्टि से देखा जाय तो इसे प्रथम स्थान मिलना चाहिये । आगे चलकर जिन हिन्दी ऋत्रियों ने अपनी रचनाओं में चौपाई छन्द को मुख्य स्थान दिया है उन पर अधिकांश रूप से जैन रचनाओं का प्रभाव है । चनई बन्द क्या कत्रि और क्या पाठक दोनों के लिये ही प्रिय सिद्ध हुआ है । प्रद्युम्न चरित को काव्य की दृष्टि से किस श्रेणी में रखा जा सकता है यह विचारने की वस्तु है । काव्य के साधारणतः दो भेद किये जाते हैं प्रथम 'प्रबन्ध-काव्य' दूसरा 'मुक्तक काव्य' । प्रवन्ध-काव्य के फिर तीन भेद हैं : महाकाव्य, खंड काव्य एवं चंपू काव्य । इसमें से प्रद्यम्न घरित सुफक काव्य तो हो नहीं सकता इसलिये यह अवश्य ही प्रबन्ध काव्य है । डा० रामचन्द्र शुक्ल ने जायसी ग्रंथावली पृष्ठ ६६ प्रबन्ध काव्य का जो लक्षण दिया है वह निम्न प्रकार है "प्रबन्ध काव्य में मानव जीवन का पूर्ण दृश्य होता है । उसमें घटनाओं की संबद्ध श्रृंखला और स्वाभाविक क्रम के ठीक ठीक निर्वाह के साथ साथ हृदय को स्पर्श करने वाले उसे नाना भावों का रसात्मक अनुभव कराने वाले प्रसंगों का समावेश होना चाहिये । इति वृत मात्र के निर्वाह से रसानुभव नहीं कराया जा सकता। उसके लिये वदन चक्र के अन्तर्गत ऐसी वस्तुओं और व्यापारों का प्रतिबित्रत चित्रण होना चाहिये जो श्रोता के हृदय में रसात्मक तरंगें उठाने में समर्थ हो । अतः काव्य में घटना का कहीं वो संकोच करना पड़ता है और कहीं विस्तार ।"
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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