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________________ ( २८ ) वर्तमान उपलब्ध कवियों में स्वयम्भू अपभ्रंश के पहिले महा कवि हैं जिनको रचनायें उपलब्ध होती हैं । 'पउमचरिय', 'रिटुमिचरिच' तथा 'स्वयम्भू छन्द' इनकी प्राप्त रचनाओं में तथा 'पंचमीचरित' अनुपलब्ध (चनाओं में से हैं। 'स्वयम्भू' अपने समय के हो नहीं किन्तु अपने बाद होने वाले कवियों में भी उत्कृष्ट नाक शास्त्री थे। बाहुल्य के वर्णन के साथ-साथ काव्यत्व का सर्वत्र माधुय्यं दृष्टिगोचर होता है । स्वयम्भू युग प्रधान कवि थे, इनने अपने काव्यों की रचना सर्वथा निडर होकर की थी। इसके बाद के सारे अपभ्रंश एवं बहुत कुछ अंशों में हिन्दी साहित्य पर भी इनकी वर्णन शैली का पूर्णतः प्रभाव पड़ा है। i १० ब शताब्दी में होने वाले कवियों में देवसेन, रामसिंह, पुष्पदन्त, धवल, धनपाल एवं पद्मकीर्ति के नाम उल्लेखनीय हैं। मुनि रामसिंह देवसेन के बाद के विद्वान हैं । डा हीरालालजी ने 'पाहुड दोहा' की प्रस्तावना में इन्हें सन् ६३३ और ११०० के बीच का अर्थात् सम्वत् १००० ई० के लगभग का विद्वान् माना है। रामसिंह स्वयं मुनि थे, इसलिये इन्होंने साधुओं को सम्बोधित करते हुए ग्रन्थ रचना की है। इनका 'पाहुड दोहा' रहस्यवाद एवं अध्यात्मवाद से परिपूर्ण है । १५ वीं शताब्दी में कबीर ने जो अपने पदों द्वारा उपदेश दिया था, घही उपदेश मुनि रामसिंह ने अपने 'पाहु दोहा ' द्वारा प्रसारित किया था | देवसेन १० वीं शताब्दी के दोहा साहित्य के आदि विद्वान् कहे जा सकते हैं । 'साधम्म दोहा उन्हीं की रचना है, जिसे इन्होंने सम्वत् ६६० के लगभग मालवा प्रान्त की धारा नगरी में पूरा किया था। महाकवि स्वयम्भू की टक्कर के अथवा किन्हीं बातों में तो उनसे भी उत्कृष्ट पुष्पदन्त हुए जिन्होंने 'महापुराण', जसहर चरिउ' एवं 'पायकुमारचरित्र' की रचना की । इसमें प्रथम प्रबन्ध-काव्य एवं शेष दोनों खण्ड काव्य कड़े जा सकते हैं। महापुराण अपभ्रंश का श्रेष्ठ काव्य है । पुष्पदन्त अलौकिक प्रतिभा सम्पन्न थे । उनकी प्रतिभा उनके काव्यों में स्थान-स्थान पर देखी जा सकती है । धनपाल कवि ने 'भविसयत्तका' की रचना की थी। कवि का जन्म वक्कड़ वैश्य वंश में हुआ था। कवि को अपनी विद्वत्ता पर अभिमान था, इसलिये एक स्थानपर इन्होंने अपने आपको सरस्वती पुत्र भी कहा है । १२२ संधियों और १८ हजार पद्यों में पूर्ण होने वाला 'हरिवंशपुराण' धवल कवि द्वारा इसी शताब्दी में रचा गया था । धवल के इस काव्य की भाषा प्रांजल और प्रवाहपूर्ण है । स्थान-स्थान पर अलंकारों की छटा पाठक के मन को मोह लेती
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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