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________________ ( २७ ) निर्देश किया है वह सही नहीं जान पड़ता । उस हिन्दी के विद्वान् यथा राहुल सांकृत्यायन, डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि भी सहमत नहीं हैं। जिन बारह रचनाओं के आधर पर शुक्लजी ने हिन्दो का आदिकाल निर्धारित किया था उनमें से अधिकांश रचनायें विभिन्न विद्वानों द्वारा परवर्ती काल की सिद्ध कर दी गयी हैं। डा० द्विवेदी का कहना है कि इसवीं से चौदहवीं शताब्दी तक का काल जिसे हिन्दी का आदिकाल कहते हैं भाषा की दृष्टि से अपभ्रंश के चढ़ाव का ही काल है। इसी अपभ्रंश के बढ़ाव को कुछ लोग उत्तरकालीन अपभ्रंश कहते हैं और कुछ लोग पुरानी हिन्दी । इसी प्रकार जब से राहुलजी ने जैन कवि स्वयम्भु के पउमचरिय (जैन रामायण) को हिन्दी भाषा का आदि महाकाव्य घोषित किया है तब से हिन्दी भाषा का प्रारम्भिक का ११ वीं शताब्दी से आरम्भ न होकर ८वीं शताब्दी तक चला गया है। हिन्दी भाषा के इन प्रारम्भिक वर्षों में हिन्दी पहिले अपभ्रंश के रूप में (जिसका नाम प्राचीन हिन्दी अधिक उचित होगा) जन साधारण के सामने आयी और फिर शनैः शनैः अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया । इसलिये मंत्र हमें हिन्दी साहित्य को सीमा को अधिक विस्तृत करना पड़ेगा | हिन्दी के इन ६ः = (७१) साहित्य प्रचुरमात्रा में लिला गया और वह भी पूर्ण रूप से साहित्यिक दृष्टिकोण से । वास्तव में अपभ्रंश साहित्य के महत्व को यदि आज से ५० वर्ष पूर्व ही समझ लिया जाता तो सम्भवतः हिन्दी साहित्य का प्रारम्भिक इतिहास दूसरी तरह ही लिखा गया होता। लेकिन डा० शुक्ल तथा श्यामसुन्दरदास आदि हिन्दी इतिहास के विद्वानों का अपभ्रंश साहित्य की घोर ध्यान नहीं गया । हिन्दी भाषा की इन प्रारम्भिक शताब्दियों में यद्यपि सभी धर्मों के विद्वानों ने रचनायें की थी, किन्तु प्राचीन हिन्दी भाषा का अधिकांश साहित्य जैन विद्वानों ने ही लिखा है | महाकवि स्वयम्भू के पूर्व भी अपभ्रंश साहित्य कितना समृद्ध था यह 'स्वयम्भू छन्द' में प्राकृत एवं अपभ्रंश के ६० कवियों के उद्धरणों से अच्छी तरह जाना जा सकता है । श्रव यहां वीं शताब्दी से १४वीं शताब्दी तक होने वाले कुछ प्रमुख कवियों का परिचय दिया जा रहा है - ८ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में योगेन्दु हुये जिन्होंने अपभ्रंश भाषा मैं 'परमात्म प्रकाश' एवं 'योगसार दोहा' की रचना की। दोनों ही आध्यात्मिक विषय की उच्चकोटि की रचनायें है । १ हिन्दी साहित्य का आदिकाल (डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी )
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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