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नेमिनाथ को केवल ज्ञान होना
(६६४ ) इस प्रकार बहुत समय व्यतीत हुआ और फिर नेमिनाथ भगवान को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। तब उनके समवशरण में सुरेंद्र, मुनीन्द्र, एवं भवनवासी देव आदि आये ।
(६६५) छप्पन कोटि यादव मन्त्र शंकर, नारायण एवं हलधर के साथ चले जहां नेमिनाथ स्वामी समवशरण में विराजमान थे। वहीं श्रीकृष्ण तथा इलधर जा पहुँचे |
(६६६) देवताओं ने बहुत स्तुति की। फिर श्रीकृष्ण ने (निम्न प्रकार ) स्तुति प्रारम्भ की। हे काम को जीतने वाले तुम्हारी जय हो ! तुम्हारी मुर असुर सेवा करते हैं (हे देव तुम्हारी जय हो । }
(६६७) दुष्ट कर्मों को क्षय करने वाले हे देव ! तुम्हारी जय हो ! मेरे जन्म जन्म के शरण, हे जिनेन्द्र ! तुम्हारी जय हो। तुम्हारे प्रसाद से मैं इस संसार समुद्र से तिर जाऊ' तत्रा फिर वापिस न आऊ ।
(६६) इस प्रकार स्तुति करके, प्रसन्न मन हो मनुष्यों के कोठे में जाकर बैठ गये । तच जिनेन्द्र के मुख से बाणी निकली जिसे देवों, मनुष्यों एवं सब जीवों ने धारण किया ।
(६६६) धर्म और अधर्म के भी आगम की बात सुनी। उसके यादवों की ऋद्धि के बारे में पूछा ।
(६७०) हे स्वामिन मुझे बताइये कि नारायण की मृत्यु किस प्रकार से होगी ? द्वारिका नगरी कब तक निश्चल रहेगी ? हे देव ! यह मुझे आगम के अनुसार बतलाइये |
गणधर द्वारा द्वारका नगरी का भविष्य बतलाना
(६७१) इस प्रकार बात पूछ कर बलराम चुप हो गये। मन में विचार कर गणधर कहने लगे कि बारह वर्ष तक द्वारिका और रहेगी। इसके बाद छप्पन कोटि यादव समाप्त हो जायेंगे ।
इन सिद्धान्त को सुना तथा प्रद्युम्न ने पश्चात् गणधर देव से छप्पन कोटि
(६५२) द्वीपायन ऋषि से ज्वाला निकल कर द्वारिका नगरी में आग लग जावेगी । मदिरा से छप्पन कोड यादव नए हो जावेंगे। केवल श्रीकृष्ण और बलराम श्रचेंगे |