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________________ । ( १६४ } (४६६) दशों दिशाओं को संबोधित करके यह कहने लगा, कि हे वसुदेव ! तुम रण के भेद को खूब जानते हो। तुम छप्पन कोटि यादव मिल कर के भी यदि शक्ति है तो रुक्मिणी को आ कर छुडा लो। (४६७) हे बलभद्र : तुम बड़े बलवान एवं श्रेष्ठ वीर हो । रण संग्राम में बड़े धीर कहे जाते हो । इल जैसे तुम्हारे पाम थियार हैं । मुझ से रुक्मिणी श्राकर छुडालो। (४२८) हे अर्जुन ! तुम खांडा बन को जलाने वाले हो, तुम्हारे पौरुष को सन कोई जानते हैं। तुमने विराट राज से गाय छुडायी थी। अब तुम रुक्मिणी को भी आकर छडा लो। (४६६) हे भीम ! तुम्हारे हाथ में गदा शोभित है । अपना पुरुपार्थ मुझे श्राज दिखलाओ। तुम पांच सेर भोजन करने हो । युद्ध में आकर अब क्यों नहीं भिड़ते हो । १४७०) हे ज्योतिषी सहदेव ! मेरे वचन सुनो । तुम्हारे ज्योतिष के अनुसार क्या होगा यह बतलायो । फिर ईसकर प्रद्य म्न ने पूछा कि तुम्हारे समान कौन रण जान सकता है ? (४७५) हे नकुल ! तुम्हारा पुरुगर्थ भी अतुल है । तुम्हारे पाम कुन्त (भाला) नामक हथियार है। अब तुम्हारे मरने का अवसर आ गया है । मुझ से रुक्मिणी आकर छुडायो। (४७२) तुम नारायण और बलभद्र होकर भी छल से कुडलपुर गये थे। उसी समय तुम्हारी बात का पता लग गया था कि तुम क्मिणी को चोरी से हर कर लाये थे। (४७३) प्रहा म्न उस अवसर पर बोला कि अय रण में याकर क्यों नहीं भिडते हो। मैं तुम से एक अच्छी बात कहता हूँ। एक ओर तुम सब क्षत्रिय वीर हो और एक ओर मैं अकेला हूँ। प्रद्य म्न की ललकार सुनकर श्रीकृष्ण का युद्ध के प्रस्ताव को स्वीकार करना (४७४) तब श्रीकृष्ण सुनकर बड़े क्रोधित हुये जैसे अग्नि में घी डाल दिया हो । मानों मिह ने वन में गर्जना की हो अथवा सागर और पृथ्वी हिलने लगे हो । तब सब यादव अपनी सेना सजाने लगे । भीम ने गदा ली, अर्जुन ने अपने कोदंड धनुष को उठा लिया और नकुल ने हाथ में भाला ले लिया जिससे तमाम ब्रह्माण्ड कंपित हो गया।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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