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( १९२) (४५१ युद्ध करने लगे, भिड़ने लगे, अखाड़े बाजी करने लगे दोनों वीर मल्ल युद्ध करने लगे । सिंह रूप धारी प्रदाम्न संभल कर उठा और बलभद्र के पैर पकड़ कर अखाड़े में डाल दिया।
(४५२) जहां छप्पन कोटि यादवों के स्वामी नारायण थे वहां जाकर हलधर गिरे । सभी लोग आश्चर्य चकित हो गये और कृष्ण भी कहने लगे कि यह बड़ी विचित्र बात है।
चतुर्थ सर्ग रुक्मिणी के पूछने पर प्रद्युम्न द्वारा अपने बचपन का वर्णन
(४५३) इतनी बात तो यहां ही रहे । अत्र यह कथा रुक्मिणी के पास के प्रारम्भ होती है। वह अपने पुत्र से पूछने लगी कि इतना बज पौरुष कहां से सीम्वा ?
(४५४) मेघकूठ नामक जो पर्वतीय स्थान है वहां यमसंबर नामका राजा निवास करता है। हे माता रुक्मिणी ! सुनों मैंने यहीं से अनेक विद्यायें सीखी है।
(४५५) मैं आपसे कहता हूँ कि मेरे वचन सुनो। नारद ऋषि मुझे यहां लाये हैं । फिर प्रदाम्न हाथ जोड़ कर बोला कि मैं उदधि माला को ले आया हूँ।
(४५६) तब माता रुक्मिणी ने हंसकर कहा कि भैया, नारद कहां है । हे पुत्र सुनो मैं तुमसे कहती हूँ कि उद्धिमाला कहां है उसे मुझे दिखलाओ । प्रद्य म्न द्वारा रुक्मिणी को यादवों की समा में ले जाने की स्वीकृति लेना
(४५७) तब प्रद्य म्न ने रुक्मिणी से कहा कि हे माता मैं तुमसे एक बचन मांगता हूँ। मैं तुम्हें तुम्हारी बाँह पकड़ कर के सभा में बैटे हुये यादवों । को ललकार करके ले जाऊंगा।
यादवों के बल पौरुष का रुक्मिणी द्वारा वर्णन (४५८) माता ने उस साइसी की यात सुनकर कहा कि ये यादव लोग बड़े बलवान है बलराम और कृष्ण जद्दी है उनके सामने से तुम कैसे जाने पाओगे ।