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(१६१) '४४२) चे सिंह द्वार पर जाकर खड़े हो गये और ब्राह्मण को द्वार पर पड़ा हुआ देखा तत्र बलभद्र ने उसे निवेदन किया कि हे त्राह्मण उठो भीतर जायेंगे।
५३) सारा नेपाल कलाम से कहा कि वह सत्यभामा के घर जीमने गया था । उसने उदर को सरस आहार में इतना भर लिया है कि पेट अफर गया है और वह उठ भी नहीं सकता ।
(५४४) तब बलभद्र (बलराम) हंस कर कहने लगे कि तुम एकही स्थान पर बैठ कर खाने रहे । ब्राह्मण खाने में बड़े लालची होते हैं तथा बहुत खाते हैं यह सब कोई जानते हैं ।
(४१५) तब यह ब्राह्मण क्रोधित होकर बोला कि बलराम तुम बड़े निर्दयी है। दूसरे तो त्रामण की सेवा करते हैं लेकिन तुम दुःख की बात कैसे बोलते हो?
(४६) तब बलभद्र कोधित होकर उठे और उसके पैर पकड़ कर निकालने के लिये चले । नाम ने कहा कि मुझे गाली क्यों देते हो? आ यो मुझे बाहर निकाल दो ।
(१४७) तब इलघर उसे निकालने लगे तो अद्य म्न ने अपनी माता रुक्मिणी से कहा। एक बात मैं तुमसे पूछता हूँ यइ कौन वीर है, मुझे कहो ।
रुक्मिणी द्वारा हन्नघर का परिचय (-४८) यह छप्पनकोटि यात्रों के मुख मंडल की शोभा है और इन्हें बलभद्रकुमार कहते हैं । यह मिह से युद्ध करना ग्व जानते है । यह तुम्हारे पितृव्य (यड़े पिता) है यह मैं तुम से कहती हूँ।
४४) पैर पकड़ कर वह (बलराम) बाहर बैंच ले गया किंतु वह (प्रद्युम्न) पंः बढ़ाकर धड़ सहित यहीं पड़ा रहा । यह अाश्चर्य देखकर बलभद्र ने कहा कि यह गुप्त बीर कौन है ?
प्रद्य म्न का सिंह रुप धारण करना (४५८) पांच टेक कर वह भूमि पर खड़ा हो गया और उसी क्षण . उसने सिंह का रुप धारण कर लिया । तब हलधर ने अपने प्रायुध को
साहाला । फिर वे दोनों वीर ललकार कर भिड़ गये।