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(२१६) वह वराह रूप धारी देव प्रद्युम्न से भिड़ गया । प्रद्युम्न भी उसकेदांतों से भिड़ गया तथा घात करने लगा। देव ने फूलों का धनुष एवं विजयशंख लाकर प्रद्युम्न को इस स्थान पर दिया।
(२२०) तब मदनकुमार उस वन में जाकर बैठ गया जहां दुष्ट जीर निवास करते थे । वन के मध्य में पहुँच कर उसने देखा कि एक बार मनोज (विद्याधर) बंधा हुश्रा था।
(२२१) बंधे हुये वीर मनोज को उसने छोड़ दिया तथा मुड़ कर वह बन के मध्य में गया। जिस विद्याधर को प्रा मन ने बांध लिया।
(२२२) फिर वह मनोज विद्याधर मन में प्रसन्न होकर मदनकुमार के पैरों पर पड़ गया। उसने हाथ जोड़ कर प्रवन से प्रार्थना की तथा इन्द्रजाल नाम की दो विद्यायें दी।
(२२३) तत्र असंतराज के मन में बड़ा उत्साह हुअा। उसने अपनी कन्या विवाह में उसे दे दी। उस विद्याधर ने बहुत भक्ति की एवं उसके पैरों में गिर गया ।
(२२४) जब वह वीर अर्जुन-बन में गया तब वहां एक यक्ष श्रा पहुँचा । उससे उसका अपूर्व युद्ध हुआ और फिर उसने कुसुम-बाण नामक वाण दिया।
(२२५) फिर वह विपुल नामक वन में गया तथा वृक्षलता के समान वह वहां खड़ा हो गया। जहां तमाल के वृक्ष थे प्रधम्न क्षण भर में वहां चला गया।
(२२६) उस वन के मध्य में स्फटिक शिला पर बैठी हुई एक स्त्री जाप जप रही थी । तब विद्याधर से प्रद्युम्न ने पूछा कि यह बन में रहने वाली स्त्री कौन है।
(२२७) बसंत विद्याधर ने मन में सोचकर कहा कि यह रति नाम की स्त्री है। यह अत्यन्त रूपवान एवं कमल के समान सुन्दर नेत्र वाली है, हे कुमार ! आप इसके साथ विवाह कर लीजिए।
(२२८) तब. प्रद्युम्न को बड़ी खुशी हुई तथा कुमार का उससे विवाह हो गया। फिर वह प्रद्युम्न वहां गया जहां उसके पांच सौ भाई खड़े थे।