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________________ कालसंपर अपनी प्रिया कञ्चनमाला के साथ विमान द्वारा उधर से जारहा था। उसने पृथ्वी पर पड़ी हुई भारी शिला को हिलते देखा। शिला को उठाने पर ससे उसके नीच एक अत्यधिक सुन्दर बालक दिखाई दिया । तुरन्त ही उसने उस सुन्दर बालक को उठा लिया और अपनी स्त्री को दे दिया। कालसंवर ने नगर में पहुँचने के बाद उस बालक को अपना पुद्र घोषित कर दिया । उधर रुक्मिणी पुत्र वियोगाग्नि में जलने लगी। उसी समय नारद ऋषि का यहां वागमन हुआ। जब उन्होंने प्रश्न म्न के अमामात गायब होने के समाचार सुने तो उन्हें भी दुख हुआ । रुक्मिणी को धैर्य बंधाते हुए नारद ऋषि प्रद्युम्न का पता लगाने विदेह क्षेत्र में केवली भगवान् के समवसरण में गये । वहां से पता लगाकर बझक्मिणी के पास आये और कहा कि १६ यर्प बाद प्रद्य म्न स्वयं सानन्द घर आ जायेगा। कालमवर के यहां प्रद्म म्न का लालन पालन होने लगा। पांच वर्ष की श्रायु में ही उसे विद्याध्ययन एवं शस्त्रादि चलाने की शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा गया। थोड़े ही समय में वह सर्व विद्याओं में प्रवीण हो गया । कालसंबर के प्रद्य म्न के अतिरिक्त ५०० और पुत्र थे। राजा कालसंबर का एक शत्रु था राजा सिंहरथ जो उसे आये दिन तंग किया करता था। उसने अपने ५०० पुत्रों के सामने उस सिंहरथ राजा को मार कर लाने का प्रस्ताव रखा पर किसी पुत्र ने कालसंबर के इस प्रस्ताव को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं की । केवल प्रद्युम्न ने इसे स्वीकार किया और एक बड़ी सेना लेकर सिंहरथ पर चढ़ाई करदो। पहिले तो राजा सिंहरथ प्रयुम्न को बालक समझ कर लड़ने से इन्कार करता रहा, पर बार बार प्रा म्न के ललकारने पर लड़ने को तैयार हुआ । दोनों में घोर युद्ध हुआ और अन्त में विजयश्री प्रद्युम्न को मिली । वह राजा सिंहस्थ को बांध कर अपने पिता कालसंबर के सामने ले आया । कालसंवर अपने शत्रु को अपने अधीन देखकर प्रद्य म्न से बड़ा खुश हुआ और उसे युवराज पद दिया एवं इस प्रकार उन ५०० पुत्रों का प्रधान बना दिया। इस प्रतिकूल व्यवहार के कारण सब कुमार प्रदान से द्वेष करने लगे एवं उसे मारने का उपाय सोचने लगे । उन सब कुमारों ने प्रद्युम्न को बुलाया और उसे धन क्रीड़ा के बहाने बन में ले गये। अपने भाइयों के कहने से प्रद्युम्न जिन मन्दिरों के दर्शनार्थ सर्व प्रथम विजयगिरि पर्वत पर चढ़ा, पर वहां उसने मुकार करता हुआ एक भयंकर सर्प देखा । प्रद्युम्न तुरन्त ही उस दरावने सपं से भिड़ गया तथा उसकी पूछ पकड़ कर उसे जमीन पर दे
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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