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________________ सर्व प्रथम रचना करने का श्रेय कवि सचारु को है । इसी रचना के पश्चात् संस्कृत और हिन्दी में प्रा म्न के जीवन पर २३ रचनायें लिखी गई । इससे विद्वानों एवं कवियों के लिये प्रा म्न का जीवन चरित्र कितना प्रिय था, इसका स्पष्ट पता लगता है। प्रद्युम्न चरित की कथा द्वारका नगरी के स्वामी उन दिनों यादव-कुल-शिरोमणि श्री कृष्णजी थे। सत्यभामा उनको पटराती थी। एक दिन उनकी सभा में नारद ऋषि का प्रागमन हो गया। करण ने बना : सलार का जपने सभा भवन से उन्हें विदा कर दिया, पर जब वे सत्यभामा का कुशल-क्षेम पूछने उसके महल में गये तो उसने उनका कोई सम्मान नहीं किया। इससे ऋषि को बड़ा कोध पाया और अपमान का बदला लेने की ठान ली। वे सत्यभामा से भी सुन्दर किसी स्त्री का कृष्णाजी के साथ विवाह करने की सोचने लगे। बहुत खोज करने पर उन्हें सक्मिणी मिली, किन्तु उसका विवाह शिशुपाल से होना तय हो चुका था। नारद ने वहां से लौट कर श्रीकृष्णाजी से रुक्मिणी के । सौन्दर्य की खूब प्रशंसा की और अन्त में उसके साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा । श्री कृपए बड़े खुश हुए। उन्होंने बलराम को साथ लेकर छलपूर्वक रुक्मिणी का हरण कर लिया। रथ में बिठाने के पश्चात् उन्होंने रुक्मिणी को छुड़ाने के लिये सभी प्रतिपक्षी योद्धाओं को ललकारा । शिशुपाल सेना लेकर श्रीकृष्ण से लड़ने आ गया। दोनों में घमासान युद्ध हुषा । अन्त में शिशुपाल मारा गया और श्रीकृष्ण रुक्मिणी को लेकर द्वारका की ओर चले । मार्ग में विवाह सम्पन्न कर श्रीकृष्ण द्वारका पहुँच गये। नगर में खूब उत्सव मनाये गये । रुक्मिणी के विवाद के बाद बहुत समय तक श्री कृष्णजी ने सत्यमामा की कोई खबर न ली। इससे सत्यभामा को बड़ा दुःख हुआ। सत्यभामा के निवेदन करने पर श्री कृष्ण जी ने उसकी रुक्मिणी से भेंट कराई। सत्यभामा और रुक्मिागी ने बलराम के सामने प्रतिज्ञा की कि जिसके पहिले पुत्र होगा वह पीछे होने वाले पुत्र की माता के वालों का अपने पुत्र के विवाह के समय मुण्डन करा देगी | दोनों रानियों के एक ही दिन पुत्र उत्पन्न हुए। दोनों के दूतों में जब यह सन्देश श्रीकृष्ण को जाकर कहा तब रुक्मिणी के पुत्र प्रदाम्न को बड़ा पुत्र माना गया किन्तु उसको जन्म लेने की ६ठी रात्रि को ही धूमकेतु नाम असुर हरण कर लेगया और पूर्व मंत्र के बैर के कारण उसे वन में एक शिला के नोचे दबा कर चला गया। उसी समय विद्याधरों का राजा
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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