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(१६५ ) धूमकेतु द्वारा प्रद्युम्न का हरण
(१२२) छठी रात्रि का जागरण करते समय धूमकेतु वहीं आ पहुँचा। जब क्षण भर में उसका विमान ठहर गया तब धूमकेतु मन में सोचने लगा।
(१९३} विमान से उतर करके प्रद्युम्न को देखा। यक्ष कहने लगा कि यह कौन क्षत्रिय है । उसी समय अपना पूर्व जन्म का बैर याद करके उसने कहा कि इसी ने मेरी स्त्री को हरा था।
(१२४) प्रछन्न रूप से उसने प्रद्युम्न को इस तरह उठा लिया जिससे नगर में किसी को पता ही न लगा। विमान में रखकर बह वहीं चला गया जहां वन में शिला रखी थी।
(१२५) धूमकेतु ने तब कई विचार किये कि क्या करू । क्या इसे समुद्र में डालकर शीव ही मार डालू? इतने में ही उसने एक ५२ हाथ लम्बी शिला देखी और योगा कि इसे इसानीचे रख दू जिससे ये दुःख माफर मर जावे ।
(१२६) पहिले किये हुए को कोई नहीं मेट सकता । प्रद्युम्न अपने कमों को भोग रहा है । उसको शिला के नीचे दबाकर बह घर चला गया। तब क्मिणी जहां सो रही थी वहां जगी।
१२७) छठी रात्रि को प्रद्युम्न हर लिया गया । तब रुक्मिणी को तीन वेदना हुई। अरे पहिरेदार तुम शीघ्र जागो और इस तरह खूब जोर से
कारो कि नारायण एवं हलधर सुन लें । सत्यभामा को बड़ी खुशी हुई और सिने खूब शोर मचाया। जिसका पुत्र रात्रि को हर लिया गया था वह क्मिणी विलाप करने लगी। । (१२८) नगर में सूचना हो गई ! यदुराज सोते हुए जाग उठे। अपन कोटि यादव पुकारते हुए देखने चले तो भी उसका (प्रद्युम्न) कहीं ही नहीं चला।
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विद्याधर यमसंवर का भ्रमण के लिए प्रस्थान
(१२६) मेत्रकूट नामक एक स्थान था जहां यमसंबर राजा निवास या । जिसके पास बारह सी विधायें थी। तथा जिसकी कंचनमाला स्त्री थी।