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________________ ( १५४ । . . . . (११२/ तब सत्यभामा ने एक बात कही कि जिसके पहिल पुत्र उत्पन्न होगा यह जिसके पीछे पुत्र उत्पन्न होगा उसे इरा देगी। तथा यह उसके पुत्र के विवाह के समय सिर के केश भी मुडवा देगी। (११३) बलिभद्र आकर सत्यभामा और रुक्मिणी के लागना (साक्षी) बन गये । दोनों ने उनसे कह दिया तुम हमारा पक्ष मत करना । जो भी हार जावे उस ही के सिर आकर मूड देना। (११४) इधर कौरवों मे दूत भेजा बह नारायण के पास पहुँच।। . ] उसने कहा कि आपके जो बड़ा पुत्र उत्पन्न हो उसके जन्म की सूचना दूत के । हाय भिजवा देना। सत्यभामा और रुक्मिणी को पुत्र रत्न की प्राप्ति (११५) इस प्रकार बहुत दिन बीतने पर दोनों है। रानियों के मुत्र उत्पन्न हुए । दोनों ही घरां में इस प्रकार लक्षणवान एवं कला संयुक्त पुत्र हुए। (११६) सत्यभामा का (दूत) बधात्रा लेकर गया और वह जाकर सिर की ओर खड़ा हो गया । रुक्मिणी का बधावा लेकर जाने वाला दूत पैरों की ओर जाकर बैठ गया। (११७) नारायण जगे और बैठे हुये । उस समय रुक्मिणी के दूत ने बधाई दी। दूत हंसता हुआ हाथ जोड़ कर बोला-रुक्मिणी के घर पुत्र उत्पन्न हुआ है। (११८) दूसरे दूत ने भी बधाई दो और नारायण से निवेदन किया ! कि हे स्वामिन् ! मुझे तुम्हारे पास यह सूचना देने के लिये कि सत्यभामा के पुत्र उत्पन्न हुआ है, भेजा है। (११६) तत्र श्रीकृष्ण ने हलधर को बुलाया और जो बात हुई थी वह उनसे बैठाकर कह दी । झूठ बोलकर कैसे टाला जा सकता है । प्रद्य म्न हो । बड़ा पुत्र है। (१२०) दोनों रानियों के पुत्र उत्पन्न हुये । इमसे घर पर बधाया गाये जाने लगे । सभी मंगला मार गाने लगे और ब्राह्मण वेद मंत्रों का उच्चारण करने लगे। (११) भेरी एवं तुरहि खूब बजने लगे । महुवर एवं शंख के लगातार शब्द होने लगे । घर घर में केशर अथवा रोली के चिन्ह लगाये गये तथा स्त्रियां अपने २ घरों में मंगल गीत गाने लगी ।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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