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(३४) बिना ही बाजा के जो नाचने लगता है यदि उसको बाजा मिल जावे तो फिर कहना ही क्या ? एक तो शृगाल और फिर उसे षिच्छू खा जाय ? एक तो नारद और फिर यह क्रोधित होकर चलदे ।
(३५) नारद ऋषि क्रोधित होकर उसी क्षण घख पड़े तथा पर्वत के शिखर पर जाकर बैठ गये। यहां बैठे हुये मन में सोचने लगे कि सत्यभामा का किस प्रकार से मान भंग हो ?
(३६) जब नारद मुनि ये विचार करने लगे तो उनकी क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो रही थी। मैं सत्यभामा का अभिमान कैसे खण्डित फलं ? था तो किसी से इसको भयभीत कराऊ अथवा इसको शिला के नीचे दाब कर छोड दू' लेकिन इससे तो श्रीकृष्ण को दुःख होगा । अन्त में यह विचार किया कि जो इससे भी सुन्दर स्त्री हो उसका श्रीकृष्ण के साथ विवाह करा दिया जावे।
(३७) तब वे गांव गांव में फिरे और घुम घूम कर देश के सब नगर देख डाले 1 एक सा दम जो विधायरों की नगारया थी उनको नारदजी ने क्षण भर में ही देख डाला ।
नारद का कुण्डलपुरी में आगमन
(२८ देशों में धूमते हुये मन में सोचने लगे कि अभी तक कोई रुपवती कुमारी दिवाई नहीं दी। फिर नारद ऋषि वहां आए जहां विद्याधर 1 की नगरी कुण्डलपुरी थी।
(३) उस नगरी का राजा भीष्मराज था जो धर्म और नीति को खूब जानता था । जिसके अनेक लक्षणों से युक्त रुपवान पुत्र एवं पुत्री थी।
(४०) प्रष्टि फैलाकर मुनि कहने लगे कि इस कुमारी के यदि कोई । योग्य पर हो और विधाना की कृपा से संयोग मिल जाये तो इसका
नारायण से सम्बन्ध हो सकता है अर्थात् इसके लिये नारायण ही योग्य है।
(४१) इस प्रकार मन में विचार करते हुए नारद ऋषि आशीर्वाद हेफर रणवास में गए । उसी तण उनको सुरसुदरी और कुमारी कृत्रिमणी दिखाई पड़ी।