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मइ रण जीतिउ कंसु पचारि जरासंध रण घालि मारि । मै सुर असुर साथ रण ब्रह्मउ, यह गरहु जु खेत अरि रह्यउ ।।५३८।। • श्रीकृष्ण का रथ से उतर कर हाथ में खलबार सेना तब तिहि धनहर घालिउ रालि, चन्द्रहंस कर लीयो सभालि। वीजु सपिसु चमकई करवालु, जाणौ सु जीभ पसारै काल ॥५३६॥ जवति खरग हाथ करि लयउ, चंद्र रयणु चाम्बइ कर गहिउ । रथ ते उतरि चले भर जाम, तोनि भुवन अकुलाने ताम ।।५४०।। इंदु चंदु फण व खल भल्यउ, जाणौ गिरि पर्वतउ टलटल्यउ । मन मा
:, अवयहु इहइ कइसी मारि ॥५४१॥ किसन कोपि रण धायउ जाम, रूपिणि मन अवलोइ ताम | दउ पचारै मेरो मरणु, जुझइ कान्हु परइ परदवणु ॥५४२॥ नारद निसुरिण कहु सतिभाउ, अव या भयो मीच को ठाउ । जब जिउ सुहड न भीरइ पचारि, बेगो नारद जाइ निवारि॥५४३।। . (५३८) १. इहु गरुया जे रण महि रहाउ (ग)
(५३६) १. तिन्हि (ग) २. धरणहर (ग)
(५४०) १. जब हरिहाथ खडग करि लेह (ग) तहि सम हाथि करिलिये (ख) २. वामई (ख प) ३. भुई (ग) भा (ख)
(५४१) १. मासए पर हरे (ग) २. भले (ख) ३. अंरमक पावन गिरि पर्द. वसई (ग) ४. सुरूपिरिण (म)
(५४२) १. विण कोपि रण परया जहि (ग) २. कहू पवाबा (खग) ३. पठ इक्यू झई परदवणु (ग)
(५४३] १. लगु (ग)