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________________ पिण्ड विधुति. 'सीकाइयो-६ पेतम् पीरपटकल्याणकप्रमाणपाठ। ॥२४॥ (झ) जोधपुर केसरियानाथ भंडार में सुरक्षित कल्पसूत्र टीका की एक प्राचीन प्रति' में लिखा है- ' " भीनमारतीक्षिपतेः पञ्चकल्याणकानि हस्त-उत्तरो अप्रे यस्मात् , एवम्भूते उत्तराफाल्गुनीलक्षणे नक्षत्रे जातानि । मोक्षकल्याणकस्य स्वाती जातत्वाविति ।” (द) तपागच्छीय पं. शान्तिविजयगणि लिखित (ले. सं. १६६७ लाहोर ) कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य सस्तव में लिखा है: " श्रमणतपस्वी भगवंत ज्ञानवंत श्रीमहावीरदेव, तेहना पांच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रे हुथा। ............... स्वातिनक्षत्रे मोक्ष पहुंता श्रीमहावीरदेव ।" (४) लपकेश( कंवला गच्छीय कक्ताचार्य सन्तानीय उपाध्याय रामतिलक शिष्य गणपतिलिखितै (ले. सं. १७२४) कल्प. सूत्र बालावरोध में लिखा है"ए श्रीकल्पसूत्र तणइ प्रारंभइ जगाध श्रीमहावीरतणां छ कल्याणिक बोलियइ, तद्यथा-'ते गं का पंचाहत्थुसरे होत्था'तिणई समई श्रमण भगवंत श्रीमहावीररहई पञ्चकल्याणिक उत्तराफाल्गुमि नक्षत्र चन्द्रमा सणइ संयोगि प्राप्त हुंतह हुआं | ..........................."ए संक्षिप्त वाचनाई जगन्नाथ तणां छ कल्याणिक जाणिवा ।" (ड) आञ्चलिक मेरुतुजरिरचित सूरिमन्त्रकल्प के पूर्वलिखित वर्धमान विधाकल्प में लिखा है: " उपाध्यायादिपदचतुष्टयेन नवपदस्थापनादिनप्रतिपन्नषटस्वपि महावीरकल्याणकेषु यावजीवं विशेषतपः कार्यम् । " १ सामना ० १८ । ३ जोधपुर केशरियानाथ भंडार डा. २..प्रत ने 1 मईयाणा उपाश्रय के भंडार, पत्र"। * *% ॥२४॥ %* So
SR No.090361
Book TitlePindvishuddhi Prakaranam
Original Sutra AuthorUdaysinhsuri
AuthorBuddhisagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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