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विशुद्धि टीकाद्वयो
पेतम् ॥ २३ ॥
बल्याणको नो पायः प्रत्येक तीर्थङ्कर का राज्याभिषेक हुआ है उसे भी मानना होगा । यही क्यों ? भगवान ऋषभदेव ने IXI ऋपम। युगलिक धर्म का निवारण कर सुमङ्गला के साथ पाणिग्रहण किया, यह लौकिक व्यवहार से एवं गाईस्थ्यधर्मरूप श्रेष्ठ कार्य : राज्या| होने से इसे भी कल्याणक मानने में क्या आपत्ति है ? यदि इस प्रकार से कल्पनाओं का आश्रय लिया जाय तो पांच ही नहीं भिषेकअपितु कितने ही कल्याणक प्रत्येक तीर्थकर के हो सकते है, परन्तु शास्त्रविहित न होने से इन्हें कल्याणकों की कोटि में किसी
कल्याणक भी शाखकारने नहीं रखा, अतः राज्याभिषेक मी कल्याणक की कोटि में नहीं आ सकता ।
वासिद्धि। ५-कतिपय शास्त्रीय प्रमाणों के उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं। अब खरतरगच्छीय आचार्यों के लिखित प्रमाण छोड़कर केवल अन्यान्यगच्छीय आचार्यों के ही प्रमाण प्रस्तुत करते हैं:(क) श्री पृथ्वीचन्द्रसूरि कल्पटिप्पन में लिखते हैं:
" हस्त उत्तरो यासां ताः, बहुवचनं बहुकल्याणकापेक्षम्, इत्यत्र पञ्चसु पञ्च, स्वाती षष्टमेव व्यन्यते ।" (ख) आचार्य विनयचन्द्रसूरि कल्पनिरुक्त (र. १३२५) में लिखते हैं:
" हस्त उत्तरो यासां ता हस्तोत्तरा-उत्तरफल्गुन्यो, बहुवचन बहुकल्याणापेक्षम् । तस्यां हि विमोध्यवनं १, गर्भाद्गर्मसक्रान्तिः २, जन्म ३, व्रतं ४, केवलं ५ चाभवत् । निर्वृतिस्तु स्वातौ ६ ।
।... (ग) तपगच्छीय आचार्य कुलमण्डनसूरि कल्पावरिका में मूल पाठ की व्याख्या करते हुए लिखते हैं।- . . "
"श्रीचर्बमानस्य षण्णां च्यवनादीनां कल्याणकानां हेतुत्वेन कथितौ तौ वा इति अमः।" ".".
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