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________________ जैनागमों में प्रथम अंग श्रीआचाराङ्गसूत्र, द्वितीय श्रुतस्कन्ध, भावनाध्ययन में वीरचरित्र का वर्णन करते हुए गणधरदेव लिखते हैं:" ते णं काले णं णं समये णं समणे भगवं हीरे से १. मृत्युतराहि चुए पइसा गर्भ वक्ते, २. हत्युत्तराहिं गाओ गर्भ साहरिए, ३. हत्थुत्तरा जाए, ४ हत्युतराहिं सञ्यतो सन्वत्ताय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारयं परवश्य, ५. इत्युत्तराहिं कसिणे परिपुष्णे निव्वाधार निरावरणे अणते अणुत्तरे केबवरणापदंसणे समुत्पन्ने, ६. साणा भगवं परिनिए+ । FI इसकी टीका करते हुए व्याख्याकार प्राचार्य शीळासूरिने भी ही कल्याणक स्वीकार किये हैं। इसी प्रकार श्रीकल्पसूत्र के प्रारंभ में भी पाठ भाता है: + इन पाठका अर्थ नागपुरीय तपागच्छ के मुख्य प्रतिक आचार्य पार्श्वन्द्रसूरि इस प्रकार लिखते हैं " श्रीमहावीर तेना पंच कल्याणिक दृस्तोत्तरा नक्षत्रमदि हुआ, जिणि उत्तरा नक्षत्र धादि दस्त के ते इस्तोरा कहिये एउ फाल्गुनी नक्षत्रमा॑दि पंच कल्याणिक हुआ, वे कल्याणिक केंद्रा ? कह के दस्तोत्तरा नक्षत्रमदि स्वामी चन्या, चवीने गाँऊगना १, हस्तोवरा नक्षत्रमहि धर्म की बीज गर्भमा २, दस्तोत्तरा नक्षत्रमा लामो जन्म पाया है, दस्तोत्तरा नक्षत्रमं ि * अणमारपणे प्रमजित हुआ. एतावता आदय४, हस्तोत्रा नक्षत्रमहि x x x स्वामी केवल हुआ ५. साइया स्वाति नक्षत्रे भगवं श्रीमदार निर्वाणदिपहुंता ६ । " ( आचारांग सूत्र बाबू प्र. पत्र २३९ व २४२ ) x पसु स्थानेषु गर्भाधान-संहरण-जन्मदीक्षा ज्ञानोत्पत्तिरूप संवृत्ता मतः पथस्तोत्तरो भगवानभूदिति" इस टीका पाठसे गर्भाधानादि जिन पात्र स्थानों में हस्तोत्तरा नक्षत्र इनका कहा गया उन पांच स्थानों में से चार को कल्याणक और एक गमदरण को अकल्याणक नहीं बताया, अतः छः कस्याणक हो मानना टीकाकारके अभिप्राय से युक्तियुक्त है । u
SR No.090361
Book TitlePindvishuddhi Prakaranam
Original Sutra AuthorUdaysinhsuri
AuthorBuddhisagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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