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________________ Brw विशुद्धि० काईयो पेतस् ३ ॥ उसको अपना समग्र व्योतिष ज्ञान सिखला हूँ । योग्य शिष्य को पाकर किस गुरु का मन प्रसन्न न होगा ?. वह ज्योतिषाचार्य मी farer जैसे छात्र को पाकर बहुत सन्तुष्ट हुआ और उसने उन्हें अपनी सारी विद्या सिखा दी। उन्होंने कौन-कौन सें ग्रन्थ पढे- इसका तो पता नहीं चलता, परन्तु इस सम्बन्ध में सुमतिगणि और जिनपालोपाध्याय दोनों ने ही यही लिखा है कि उन्होंने 'सर्व ज्योतिषशास्त्र' पढे थे । जिनवल्लभ गण की विद्वत्ता का वर्णन करते हुए उक्त दोनों लेखकोंने जिन लेखकों का और प्रन्थों का उल्लेख किया है उनसे पता चलता है कि उन्होंने जैन सिद्धान्त और ज्योतिष शात्र के अतिरिक्त और भी बहुत से प्रन्थ पढ़े थे। इसके अतिरिक्त पत्तन में उन्होंने जो अध्ययन किया उसमें जैन दर्शन और ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त किन्हीं अन्य ग्रन्थों के अध्ययन करने का कोई प्रमाण नहीं मिलता । अतः यह मानना पड़ेगा कि इनके अतिरिक्त उन्होंने जो कुछ अध्ययन किया उसके लिये तो अधिकांशतः वे चैत्यवासी जिनेश्वराचार्य के ही ऋणी थे। यही कारण है कि वे अपने प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक काव्य में जहां अपने "सद्गुरु अभयदेवाचार्यै'' का स्मरण करते हैं तो " मद्गुरवो जिनेश्वरसूरयेः " कह कर उन चैत्यवासी आचार्य को भी नहीं भूलते। १ पार्क धातुरवाचि कः ? भवतो मीरोर्मनः प्रीतयें !, सालङ्कारविदग्धया वद कया रज्यन्ति ? विद्वज्जनाः । पाणौ किं मुरजिद् बिभर्ति है सुविं तं ध्यायन्ति ? के वा सदा, के वा ब्रद्गुरवोऽत्र चारुचरणधीसुता विश्रुताः ॥ १५८ ॥ उत्तरं श्रीमदभयदेवाचार्याः ।" २. ॐ स्यादसि वारिवायचपति के द्वीपिनं इत्ययं १, लोके प्राह इयः प्रयोगनिपुणैः कः शब्दधातुः स्मृतः १ । ते पालयिताऽत्र दुर्बरवरः कः यतोऽम्पोनि - हि श्रीजिनवक्रमः । स्तुतिपदं कीढविधाः के सताम् ॥ १५९ ॥ उत्तरं "मद्गुरवो जिनेश्वरसूरयः।” उपोद्घात । अभयदेव भूमि से विद्या ध्ययन | II
SR No.090361
Book TitlePindvishuddhi Prakaranam
Original Sutra AuthorUdaysinhsuri
AuthorBuddhisagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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