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________________ ६४६ ] [ पवमणसारो कारि ॥२८॥ अस्वभावनयेनायस्कारनिशिततीक्ष्णविशिखवत्संस्कारसार्यक्यकारि ॥५६॥ कालनयेन निदाघदिवसानुसारिपच्यमानसरकारपालयत्समगायन सिद्विः ।।३॥ अकालनऐन कृत्रिमोमपाच्यमानसहकारफलकत्समयानायत्तसिद्धिः ।।३१॥ पुरुषकारनयेन पुरुषकारोपलब्धमधुकुक्कुटीकपुरुषकारवादीवचत्नसाध्यसिद्धिः॥३२।। देवनयेन पुरुषकारवादिवत्तमधुकुक्कुटीगर्भलब्धमाणिक्यदेववावियदयत्नसाध्य आत्मद्रव्य अस्वभाव नय से संस्कार को सार्थक करने वाला है (अर्थात आत्मा को अस्वभाव नय से संस्कार उपयोगी है), जिसकी (स्वभाव से नोक नहीं होती, किन्तु संस्कार करके) लहार के द्वारा नोक निकाली गई हो ऐसे पैने बाण की भांति । आत्मा अस्वभाव नय से कर्मों के द्वारा रागी द्वेषी किया जाता है इसलिये संस्कार को सार्थक करने वाला है ॥२६॥ आत्म द्रव्य काल नय से जिसकी सिद्धि समय पर आधार रखती है ऐसा है गर्मी के दिनों के अनुसार पकने वाले आत्रफल की भांति । कालनय से कार्य सिद्धि समय के अधीन है, जैसे गर्मी के दिनों के अनुसार आम्रफल पकता है अथवा आयु पूर्ण होने पर जीव की पर्याय समाप्त होती है ॥३०॥ ___ आत्मद्रव्य अकालनय से जिसकी सिद्धि समय पर आधार नहीं रखती है, कृत्रिम गर्मी से पकाये गये आम्रफरन की भांति । अकालनय से कार्य की सिद्धि समय के अधीन नहीं है, अर्थात् कार्य का काल निश्चित नहीं है, जब कार्य के अनुकूल सामग्री मिल जाय तब ही कार्य हो जाता है। जैसे जीव के मोक्ष माने में काल का नियम नहीं है। बाह्य अभ्यन्तर सामग्री मिलने पर मोक्ष होता है ।।३१॥ आत्मद्रव्य पुरुषकार मय से जिसकी सिद्धि यत्नसाध्य है ऐसा है, जिसे पुरुषकार से नोबू का वृक्ष प्राप्त होता है (उगता है) ऐसे पुरुषकारवादी की भांति । पुरुषार्थनय से कार्य की सिद्धि बुद्धि-पूर्वक प्रयत्न से होता है, जैसे किसी पुरुषार्थवादी मनुष्य को पुरुषार्थ से नीबू का वृक्ष प्राप्त होता है ॥३२॥ ___'इह चेष्टितदृष्टपौरुषादीन्यपि पर्यायनामानि'-अष्टसहस्री पृ० २५६ ___ आत्मद्रव्य देवनय से जिसकी सिद्धि अयत्नसाध्य है (यत्न बिना होता है) ऐसा है, पुरुषकारवादी द्वारा प्रदत्त नीबू के वृक्ष के भीतर से जिसे (बिना यत्न के, देव से) माणिक प्राप्त हो जाता है ऐसे देववादो को भांति । कार्य की सिद्धि देवनय से योग्यता पर आधारित है ॥३३॥ 'योग्यता (भध्यता) पूर्वकर्मदैवमदृष्टमिलि पर्यायनामानि'-अष्टसहस्री पृ० २५६ ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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