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________________ ६०८ ] [ एवयणसारो यौगपद्यपरिणतिनिवृतैकाग्र्चात्मकसुमार्गभागी स श्रमणः स्वयं परस्य मोक्षपुण्यायतनत्वादविपरीत फलकारणं कारणमविपरीतं प्रत्येयम् ।। २५६ ।। भूमिका - अब, अधिपरीत फल का कारण ऐसा जो 'अविपरीत कारण' उसको बतलाते हैं अभ्ययार्थ - [ उपरतदापः ] जिसके पाप रुक गया है, [सर्वेषु धार्मिकेषु समभावः ] जो सभी मिकों के प्रति समभावान है, और [गुरासितपथी ] जो गुणसमुदाय का सेवन करने वाला है, [ स: पुरुष: ] वह पुरुष [ सुमार्गस्य ] सुमार्ग का [ भागी भवति ] भागी होता है अर्थात् सुमार्गवान है । टीका- - पाप के रुक जाने से, सर्व धर्मियों के प्रति स्वयं मध्यस्थ होने से और गुणसमूह का सेवन करने से जो सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र की युगपत् परिणति से रचित एकाग्रता स्वरूप सुमार्ग का पात्र है, वह श्रमण निज को और पर को मोक्ष का और पुण्य का आयतन है इसलिये वह (श्रमण ) अविपरीत फल का कारण ऐसा अविपरीत कारण है, ऐसी प्रतीति करनी चाहिये ॥२५६ ॥ तात्पर्यवृत्ति अथ पात्रभूततपोधनलक्षणं कथयति 'जवरवावी उपरतपापत्वेन सब्बेसुधम्मिगेसुगुणसभिदिदोवसेबी सर्वधार्मिक समदशित्वेन गुणग्रामसेवकत्वेन च समभावी पुरिसो स्वस्थ मोक्षकारणत्वात्परेषां पुण्यकारणत्वाच्चेत्थंभूतगुणयुक्तः पुरुषः सुमग्गस भागी सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्रैकाग्र घलक्षणनिश्चय मोक्षमार्गस्य भाजनं हवदि भवतोति ॥ २५६ ॥ उत्थानिका— आगे उत्तम पात्ररूप तपोधन का लक्षण कहते हैं अन्वय सहित विशेषार्थ - ( स पुरिसो) वह पुरुष ( सुमग्गस्स भागी ) मोक्षमार्ग का पात्र (हवदि) होता है जो ( उपरदपावो) सर्व विषय कषाय रूप पापों से रहित है, ( सन्त्रेसु धम्मसु समभावो) धर्मात्माओं में समान भाव का धारी है तथा ( गुणसमिदिदोवसेवी) गुणों के समूहों को रखने वाला है । जो पुरुष सयं पापों से रहित है, सर्व धर्मात्माओं में समान दृष्टि रखने वाला है तथा गुण समुदाय का सेवने वाला है और आप स्वयं मोक्षमार्गी होकर दूसरों के लिये पुण्य की प्राप्ति का कारण है, ऐसा ही महात्मा सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र की एकता रूप निश्चयमोक्षमार्ग का पात्र होता है ।। २५६ ।। अथाविपरीत फलकारणं कारणमविपरीतं व्याख्याति - असुभोवयोग रहिदा सुद्धवजुत्ता सुहोवजुत्ता वा । णित्यारयति लोग तेसु पसत्थं लहदि भत्तो ॥ २६०॥
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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