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________________ पवयणसारो ] श्रमण को, जो जीवन-मरण, लाभ-अलाम आदि में समभाव को रखने वाला है, ऐसे रोग से पीड़ित देखकर, जो रोग अनाकुलता रूप परमात्म स्वरूप से विलक्षण आकुलता को पैदा करने वाला है, या भूख प्यास से निर्बल आनकर या मार्ग की थकान से या मास पक्ष आदि उपवास की गर्मी से असमर्थ समझकर अपनी शक्ति के अनुसार उसकी सेवा करे। तात्पर्य यह है कि अपने आत्मा की भावना के घातक रोग आदि के अवसर पर वैयावृत्य करना साधु का कर्तव्य है उस शेषकाल में अपना चारित्र पाले ॥२५२॥ अथ लोकसंभाषणप्रवृत्ति सनिमित्तविभागं दर्शयति वेज्जावच्चणिमित्तं गिलाणगुरुबालवुढ्डसमणाणं । लोगिगजणसंभासा ण णिदिदा वा सुहोवजुदा ॥२५३॥ वैयावृत्त्यनिमित्तं ग्लानगुरुबालवृद्धश्रमणानाम् । लौकिकजनसंभाषा न निन्दिता वा शुभोपयुता ।।२५३।। समधिगतशुद्धात्मवृत्तीनां ग्लानगुरुबालवृद्धश्रमणानां वयावृत्त्यनिमित्तमेव शुद्धात्मवृत्तिशून्यजनसंभाषणं प्रसिद्धं न पुनरन्यनिमित्तमपि ॥२५३॥ भूमिका-अब, लोगों के साथ बातचीत करने की प्रवृत्ति विभाग का कारण बतलाते हैं। अन्वयार्थ-[वा] और [ग्लानगुरुबालवृद्धश्रमणानाम्] रोगी, गुरु (पूज्य बड़े), बाल तथा वृद्ध श्रमणों की [वैयावृत्यनिमित्तं] सेवा के निमित्त से, [शुभोपयुता] शुभोपयोगयुक्त मुनि [लौकिकजनसंभाषा] लौकिक जनों के साथ बातचीत करने का [न निन्दिता] निषेध नहीं है। टीका-शुद्धात्मपरिणति में भले प्रकार लोन ऐसे रोगो, गुरु बाल और वृद्ध श्रमणों को सेवा के निमित्त से हो (शभोपयोगी श्रमणको) शुद्धात्मपरिणति शून्य लोगों के साथ बातचीत युक्त है (शास्त्रों में निषिद्ध नहीं है), किन्तु अन्य निमित्त से निषेध है ॥२५३॥ तात्पर्यवृत्ति अथ शुभोपयोगिनां तपोधनवैयावृत्त्यनिमित्तं लौकिकसंभाषणविषये निषेधो नास्तीत्युपदिशति ण णिदिदा शुभोपयोगित्तपोधनानां न निन्दिता न निषिद्धा। का कर्मतापना? लोगिगजणसंभासा लौकिकजनैः सह संभाषा वचनप्रवृत्ति: सुहोवजुदा वा अथवा सापि शुभोपयोगयुक्ता भण्यते । किमर्थं न निषिद्धा ? बेज्जावच्चानिमित्तं वयावृत्त्यनिमित्तम् । केषां वैयावृत्त्यम् ? गिलाणगुरुवालवुड्ढसमणाणं ग्लानगुरुबालवृद्धश्रमणानाम् । अत्र मुरुशब्देन स्थूलकायो भण्यते अथवा पूज्यो वा गुरुरिति । तथाहि-यदा कोऽपि शुभोपयोगयुक्त आचार्यः सरागचारित्रलक्षणशुभोपयोगिनां वीतराग
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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