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________________ पवयणसारो ] [ ५४१ अथ कुतो युक्ताहारत्वं सिद्धयतीत्युपदिशति केवल देहो लामो देहे ण प्रमत्ति' रहिदपरिकम्मो । आज तो ते तवसा अणिगूहिय अप्पणो सत्ति ॥२२८।। केवलदेहः श्रमणो देहे न ममेति रहितपरिकर्मा । आयुक्तवांस्तं तपसा अनिगृह्यात्मनः शक्तिम् ॥२२८!। यतो हि श्रमणः श्रामण्यपर्यायसहकारिकारणत्धेन केवलदेहमात्रस्योपधेः प्रसह्याप्रतिवेधकत्वात्केवलदेहत्वे सत्यपि देहे कि किचण' इत्यादिप्राक्तनसूत्रद्योतितपरमेश्वराभिप्रायपरिग्रहेण न नाम ममायं ततो नानुग्रहाहः किंतूपेक्ष्य एवेति परित्यक्तसमस्तसंस्कारत्वाद्रहितपरिकर्मा स्यात् । ततस्तन्ममत्वपूर्वकानुचिताहारग्रहणाभावाद्युक्ताहारत्वं सिद्धयेत् । पतश्च समस्तामप्यात्मशक्ति प्रकटयन्ननन्तरसूत्रोक्तेिनानशनस्वभावलक्षणेन तपसा तं देह सर्वारम्भेणाभियुक्तवात् स्यात् । तत आहार ग्रहणपरिणामात्मकयोगध्वंसाभावाद्युक्तस्यैवाहारेण च युक्ताहारत्वं सिद्धयेत् ॥२२॥ भूमिका-अब, (श्रमण) के युक्ताहारित्व कैसे सिद्ध होता है, सो उपदेश करते हैं अन्वयार्थ-[केबलदेहः श्रमणः] केवलदेहो-जिसके देहमात्र परिग्रह विद्यमान है, ऐसे श्रमण [देहे ] शरीर को भी [न मम इति] 'मेरा नहीं हैं। यह समझकर [रहित. परिकर्मा] शरीर संस्कार नहीं करते हये, [आत्मनः] अपने आत्मा की [शक्ति] शक्ति को [अनिगृह्य] नही छिपाते हुए [तपसा] तप में [तं] उस शरीर को [आयुक्तवान् ] लगा देते हैं। टीका-श्रामण्यपर्याय के सहकारी कारण के रूप में केवल वेहमात्र उपधि को श्रमण जबरदस्ती निषेध नहीं करता इसलिये वह केवल देहवान् है, ऐसा देहवान होने पर भी, "कि किंचण' इत्यादि पूर्वसूत्र (गाथा २२४) द्वारा प्रकाशित किये गये परमेश्वर के अभिप्राय को ग्रहण करके 'यह (शरीर) वास्तव में मेरा नहीं है इसलिये यह अनुग्रह योग्य नहीं है किन्तु वह उपेक्षा योग्य ही है, इस प्रकार समस्त शारीरिक संस्कार को छोड़ने से परिकर्म रहित है। इसलिये उसके देह के ममत्वपूर्वक अनुचित आहारग्रहण का अभाव होने से युक्ताहारित्व सिद्ध होता है। और प्रकारान्तर से उसने समस्त ही आत्मशक्ति को प्रगट करके, अन्तिम (गाथा २२७) सूत्र द्वारा कथित अनशनस्वभावलक्षण तप में उस शरीर को १. ममत्तरहियपरिकम्मो (ज० व०)
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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