SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 517
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पवयणसारो ] [ ४८६ तदेतद्बहिरंगलिंगम् । तथात्मनो यथाजातरूपधरत्थापसारितायथा जातरूपधरत्वप्रत्ययमोह रागद्वेषादिभावानामभावादेव तद्भावभाविनो ममत्यकर्मप्रक्रमपरिणामस्य शुभाशुभोपरक्तोपयोगतत्पूर्वकतथाविधयोगाशुद्धियुक्तत्वस्य परद्रव्यासापेक्षत्वस्यचाभावान्मूर्छारम्भवियुक्तत्वमुपयो गयोगशुद्धियुक्तत्वमपरापेक्षत्वं च भवत्येव तदेतदन्तरंग लिंगम् ॥ २०५ - २०६ ॥ भूमिका – अब, अनादि संसार से अनभ्यस्त होने से जो अत्यन्त अप्रसिद्ध है ऐसे इस यथाजातरूपधरत्व के बहिरंग और अंतरंग दो लिंगों का जो कि अभिनव अभ्यास में कुशलता से उपलब्धि की सिद्धि के सूचक हैं, उनका उपदेश करते हैं अन्वक्षार्थ --~ [ यथाजातरूपजातम् ] जन्म समय के रूप जैसा रूप वाला, [उत्पाटितकेशश्मश्रुकं ] सिर और दाढ़ी मूंछ के बालों का लोच किया हुआ [ शुद्धं ] शुद्ध (परिग्रहरहित ) [ हिंसादितः रहितम् ] हिंसादि से रहित और [ अप्रतिकर्म] प्रतिकर्म ( शारीरिक श्रृंगार ) से रहित [ लिंगं भवति ] लिंग ( यतिधर्म का बहिरंग चिन्ह ) होता है । [मुर्च्छारम्भवियुक्तम् ] मूर्च्छा (ममत्व ) और आरम्भ रहित [ उपयोगयोगशुद्धिभ्यां युक्तं ] उपयोग और योग की शुद्धि से युक्त तथा [न परापेक्ष ] पर की अपेक्षा से रहित ऐसा [जैनं ] जिनेन्द्रदेव कथित [लिंगम् ] ( श्रामण्यका अंतरंग ) लिंग है [ अपुनर्भवकारणम् ] जो कि मोक्ष का कारण है । टोका -- प्रथम तो अपनी इच्छा से, यथोक्त ( गाथा २०३-२०४) क्रम से यथाजातरूपधारी' होने से आत्मा के अयथाजातरूप के कारणभूत मोहरागद्वेषादिभावों का अभाव होता ही है, और उनके अभाव के कारण, जो कि उनके सद्भाव में होते हैं ऐसे (१) वस्त्राभूषण का धारण, (२) सिर और डाढ़ी मूछों के बालों का रक्षण (३) सकिंचनत्व * परिग्रह ( ४ ) सावद्ययोग से मुक्तता तथा ( ५ ) शारीरिक संस्कार का करना, इन ( पाँचों) का अभाव होता है, जिससे ( उस आत्मा के ) (१) जन्म समय के रूप जैसा रूप, (२) सिर और डाढ़ी मूछ के बालों का लोंच, (३) शुद्धत्व (परिग्रह रहितता ) ( ४ ) हिसाबरहितता, तथा (५) अप्रतिकर्मत्व ( शारीरिक शृंगार-संस्कार का अभाव ) होता ही है । इसलिये यह बहिरंग लिंग है। और फिर, आत्मा के यथाजातरूपधरत्व से दूर किया गया जो अयथाजातरूपधरत्व, उसके कारणभूत मोहरागद्वेषादि भावों का अभाव होने से ही, ओ १. यथाजातरूपधर ( आत्मा का ) - सहजरूप धारण करने वाला। २. अयथाजातरूपधर - ( आत्मा का ) असहजरूप धारण करने वाला । ३. सकिचन - जिसके पास कुछ भी (परिग्रह) हो ऐसा । ४. कर्मप्रक्रम -- काम को अपने ऊपर लेना, काम में युक्त होना, काम को व्यवस्था । तत्पूर्वक - उपरक्त (मलिन) उपयोगपूर्वक ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy