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________________ पवयणसारो ] रमाणद्रव्याणामेकपिण्डपर्यायेण परिणामः । अनेकपरमाणुद्रव्यस्वलक्षणभूतस्वरूपास्तित्वानामनेकत्येऽपि कथंचिदेकत्येनावभासनात् ॥१६१।। भूमिका—अब शरीर, वाणी और मन का परद्रव्यत्व निश्चित करते हैं : अन्वयार्थ-[देहः च मनः वाणी] देह, मन और वाणी [पुद्गलद्रव्यात्मकाः] पुद्गल द्रव्यरूप हैं, [इति निर्दिष्टाः] ऐसा (वीतरागदेव ने कहा है [अपि पुनः] और पुद्गल द्रव्यं ] वह पुद्गल द्रव्य [परमाणुद्रव्याणां पिण्डः] परमाणु द्रव्यों का पिण्ड है । टीका-शरीर वाणी और मन तीनों ही परद्रव्य हैं, क्योंकि वे पुद्गल द्रव्यात्मक हैं। उनके पुद्गलद्रव्यत्व है, क्योंकि वे पुद्गल द्रव्य के स्वलक्षणभूत स्वरूपास्त्वि में निश्चित हैं। उस प्रकार का पुद्गलद्रव्य अनेक परमाणुओं का एक पिण्ड पर्यायरूप से परिणाम है, क्योंकि अनेक परमाणुद्रच्यों के स्वलक्षणभूत स्वरूपास्तित्व अनेक होने पर भी कथंचित् स्निग्धत्व रूक्षत्वकृत बंध परिणाम की अपेक्षा से एकत्वरूप अवभासित होते हैं ॥१६॥ तात्पर्यवृत्ति अथ कायवाङ्मनसां शुद्धात्मस्वरूपात्परद्रव्यत्वं व्यवस्थापयति देहो य मणो वाणी पुग्गलववप्पत्ति णिहिछा देहश्च मनो वाणी तिस्रोऽपि पुद्गलद्रव्यात्मका इति निर्दिष्टाः । कस्मात् ? व्यवहारेण जीवेन सहकत्वेऽपि निश्चयेन परमचैतन्यप्रकाशपरिणतेभिन्नत्वात् । पुद्गलद्रव्यं कि भण्यते ? पुग्गलदरवं हि पुणो पिडो परमाणुदवाणं पुद्गलद्रव्यं हि स्फुटं पुनः पिण्ड: समूहो भवति । केषां ? परमाणुद्रव्याणामित्यर्थः ।। १६१॥ उत्थानिका-आगे शरीर, वचन तथा मन को शुद्धात्मा के स्वरूप से भिन्न परद्रव्य रूप स्थापित करते हैं.. अन्वय सहित विशेषार्थ—(देहो य मणो वाणी) शरीर, मन और वचन (पुग्गलदनप्पत्ति) ये तीनों ही पुद्गल द्रव्यमयी (णिद्दिट्टा) कहे गए हैं। (पुणो) तथा (पुग्गलदव्वं पि) पुद्गलद्रव्य भी (परमाणुदवाणं पिण्डो) परमाणुरूप पुद्गल द्रव्यों का समूहरूप स्कन्ध है। जीव के साथ इन मन वचन काय की एकता व्यवहारतय से माने जाने पर भी निश्चयनय से ये तीनों ही परम चैतन्यरूप प्रकाश की परिणति से भिन्न हैं। वास्तव में ये परमाणु रूप पुद्गलों के बने हुए स्कन्धरूप वर्गणाओं से बनकर पुद्गलद्रव्यमयी ही है ॥१६॥ अथात्मनः परद्रव्यत्वाभावं परद्रव्यकर्तृत्वाभावं च साधयति--- पाहं पोग्गलमइओ' ण ते मया पोग्गला' कया पिंडं । तम्हा हि ण देहोऽहं कत्ता वा तस्स देहस्स ॥१६२॥ १. पुग्गलमइओ (ज" व्०)। २. पुग्गला (ज. बृ०) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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