SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७२ ] [ पवयण सारी भूमिका—अब पौद्गलिक प्राणों की संतति (प्रवाह-परम्परा) की प्रवृत्ति का अन्तरंग हेतु सूत्र द्वारा कहते हैं __ अन्वयार्थ--[यावत्] जब तक [देहप्रधानेषु विषयेषु] देहप्रधान (देहादिक) विषयों में [ममत्वं] ममत्व को [न त्यजति] नहीं छोड़ता, [कर्मम नीमसः आत्मा] तब तक कर्म से मलीन आत्मा [पुनः पुनः] पुनः पुनः [अन्यान् प्राणान् ] अन्य-अन्य प्राणों को [धारयति धारण करता है ।।१५०|| टीका-जो यह आत्मा की पौद्गलिक प्राणों की संतानरूप प्रयत्ति है, उसका अन्तरंगहेतु शरीरादि का ममत्वरूप उपरक्तत्व है, जिसका मूल (निमित्त) अनादि पौलिक कर्म है ॥१५॥ तात्पर्यवृत्ति अथेन्द्रियादिप्राणोत्पत्तेरन्तरङ्गहेतुमुपदिशति आवाकम्ममलिमसो अयमात्मा स्वभावेन भावकर्मद्रव्यकर्मनोकर्ममलरहितत्वेनात्यन्तनिर्मलोऽपि व्यवहारेणानादिकर्मबन्धवशान्मलीमसो भवति । तथाभूतः सन् कि करोति? धरेवि पाणे पुणो पुणो अण्णणे धारयति प्राणान् पुनःपुनः अन्यानवतरान् । यावकिम् ? ण चयदि जाव ममति निस्नेहचिच्चमत्कारपरिणतेविपरीतां ममतां यावत्काल न त्यजति । केष विषयेषु ? देहपहाणेसु विसयेसु देहविषयरहितपरमचैतन्यप्रकाशपरिणतेः प्रतिपक्षभूतेषु देहप्रधानेषु पञ्चेन्द्रियविषयेविति । ततः स्थितमेतत् इन्द्रियादिप्राणोत्पत्तदेहादिममत्वमेबान्तरङ्गकारणमिति ॥१५०॥ उत्थानिका--आगे इन्द्रिय आदि प्राणों की उत्पत्ति का अंतरंग कारण उपदेश करते है ____ अन्वय सहित विशेषार्थ-(कम्ममलिमसो) कर्मों से मैला (आदा) आत्मा (पुणो पुणो) बार बार (अण्णे पाणे) अन्य अन्य नवीन प्राणों को (धरेदि) धारण करता रहता है। (जाव) जब तक (देहपहाणेसु विसयेसु) शरीर आदि विषयों में (मत्ति ण चयदि) ममता को नहीं छोड़ता है। जो आत्मा स्वभाव से भावकर्म, द्रव्य कर्म और नोकर्मरूपी मल से रहित होने के कारण अत्यन्त निर्मल है तो भी व्यवहारनय से अनादि कर्म बंध के वश से मैला हो रहा है। ऐसा होता हआ यह आत्मा उस समय तक बार-बार इन आयु आदि प्राणों को प्रत्येक शरीर में नवीन-नवीन धारता रहता है जिस समय तक यह शरीर व इन्द्रिय विषयों से रहित परम चैतन्यमयी प्रकाश की परिणति से विपरीत देह आदि पंचेद्रियों के विषयों में स्नेह रहित चैतन्य चमत्कार की परिणति से विपरीत ममता को नहीं
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy