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________________ पवयणसारो ] [ २६६ स्याभाव इत्पुभयशून्यत्वं स्यात् । यथा पटाभावमात्र एव घटो घटाभावमात्र एव पट इत्युगणेशोतरूपत्वं तथा तन्याभाममान एव गणो गुणाभावमात्र एव द्रव्यमित्यत्राप्यपोहरूपत्वं स्यात् । ततो द्रव्यगुणयोरेयत्वमशन्यत्वमनपोहत्वं चेच्छता यथोदित एवातद्धावोऽभ्युपगन्तव्यः ॥१०॥ भूमिका--अब, सर्वथा अभाव अतद्भाव का लक्षण है, इसका निषेध करते हैं-- अन्वयार्थ-[अर्थात् ] स्वरूपापेक्षा से [यत् द्रव्यं जो द्रव्य है [तत् न गुणः] वह गुण नहीं है, [यः अपि गुणः] और जो गुण है [सः न तत्त्वं] वह द्रव्य नहीं है। [एषः हि अतभावः] यह ही वास्तव में अतद्भाव है, [न एव अभाव:] (सर्वथा) अभाव रूप ही (असद्भाव) नहीं है, [इति दिदिष्ट:] इस प्रकार से (जिनेन्द्र देव द्वारा) निर्देश किया गया है । टीका-एक द्रव्य में जो द्रव्य है वह गुण नहीं है, जो गुण है यह द्रव्य नहीं है-- इस प्रकार जो द्रव्य का गुण रूप से अथवा गुण का द्रव्य रूप से न होना है, वह अतद्भाव है। इसने से ही अन्यत्व व्यवहार (अन्यत्व रूप व्यवहार) सिद्ध होता है। (परन्तु) द्रव्य का अभाव गुण है, गुण का अभाव द्रव्य है-ऐसे लक्षण वाला अभाव अतद्भाव नहीं है। यदि ऐसा हो तो (१) एक द्रव्य को अनेकत्व (अनेक व्रव्यपना) आ जायगा, (२) उभय शून्यता दोनों का अभाव हो जायगा,) अथवा (३) अपोहरूपता (एक दूसरे का अभाव मात्र होना) आ जायेगी । इसी को समझाते हैं (१) जैसे अचेतन द्रव्य का अभाव चेतन द्रव्य है (और) चेतन द्रव्य का अभाव मवेतन द्रव्य है-इस प्रकार उनके अनेकत्व (द्वित्व) है, उसी प्रकार द्रव्य का अभाव गुण, (और) गुण का अभाव द्रव्य है-इस प्रकार एक द्रव्य के भी अनेकत्व आ जायगा । (अर्थात् द्रव्य के एक होने पर भी, द्रव्य स्वयं एक पृथक् द्रव्य हो जायेगा और उसके गुणों में से प्रत्येक गुण पृथक-पृथक् द्रव्य बन जायेंगे, इस प्रकार एक द्रव्य के अनेक द्रव्य बन जायेगे)। (२) जैसे सुवर्ण का अभाव होने पर सुवर्णत्व का अभाव हो जाता है, और सुवर्णब का अभाव होने पर सुवर्ण का अभाव हो जाता है इस प्रकार उभय शून्यत्व हो जाता है, उसी प्रकार द्रव्य का अभाव होने पर गुण का अभाव और गुण का अभाव होने पर विजय का अभाव हो जायेगा, इस प्रकार उभय शून्यता हो जायेगी। (अर्थात् द्रव्य तथा गुण धोनों के अभाव का प्रसंग आ जायेगा)।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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