SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० ] [ पवयणसारो है, बीज, अंकुर और वृक्षत्व की भांति । जैसे अंशोवृक्ष के बीज वृक्षत्व स्वरूप तीन अंश, व्यय-उत्पाद-प्रौव्य स्वरूप निज धर्मों से आलम्बित एक साथ ही भासित होते हैं, उसो प्रकार अंशी-द्रव्य के, नष्ट होता हुआ भाव, उत्पन्न होता हुआ भाव, और अवस्थित रहने वाला भाव यह हैं लक्षण जिनके ऐसे तीनों अंश व्यय-उत्पाद-प्रौव्य स्वरूप निज धर्मों के द्वारा आलम्बित एक साथ ही मासित होते हैं। किन्तु यदि द्रव्य का ही (१) व्यय, (२) उत्पाद और (३) धौव्य माना जाय तो सारी गड़बड़ी हो जायेगी। यथा (१) अकेले, यदि द्रव्य का ही व्यय माना जाय, तो क्षण भंग से लक्षित समस्त द्रव्यों का एक क्षण में ही व्यय हो जाने से द्रव्य शून्यता आ जायगी, अथवा सत् का उच्छेव हो जायगा। (यदि द्रव्य का ही उत्पाद माना आय, तो समय-समय पर होने वाले उत्पाद के द्वारा चिन्हित द्रव्यों की अनन्तता आ जायगी। (अर्थात् समय-समय पर होने वाला उत्पाद जिसका चिन्ह हो ऐसा प्रत्येक द्रव्य अनन्त द्रव्यत्व को प्राप्त हो जायगा) अथवा असत् का उत्पाद हो जायगा, (३) यदि द्रव्य का ही ध्रौव्य माना जाय तो क्रमशः होने वाले भावों के अभाव के कारण द्रव्य का अभाव हो जायगा, अथवा क्षणिकत्व आ जायगा । इसलिये उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य के द्वारा पर्याय आलम्बित हों, और पर्यायों के द्वारा द्रव्य आलम्बित हो, कि जिससे यह सब एक ही द्रव्य होता है ॥१०१॥ तात्पर्यवत्ति अथोत्पादव्ययध्रौव्याणि द्रव्येण सह परस्पराधाराधेयभावत्वादन्वयद्रव्याथिकनयेन द्रव्यमेत्र भवतीत्युपदिशति, उप्पावविदिभंगा त्रिशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावात्मतत्त्वनिविकारस्वसंवेदनज्ञानरूपेणोत्पादस्तस्मिन्नेत्र क्षणे स्वसंवेदनज्ञानविलक्षणाज्ञानपर्यायरूपेण भङ्गः, तदुभयाधारात्मद्रव्यत्वावस्थारूपेण स्थितिरित्युक्तलक्षणास्त्रयो भङ्गा कर्तारः विज्जते विद्यन्ते तिष्ठन्ति । केषु ? पज्जएसु सम्यक्त्वपूर्वकनिर्विकारस्वसंवेदनज्ञानपर्याये तावदुत्पादस्तिष्ठति स्वसंवेदनज्ञानविलक्षणाज्ञानपर्यायरूपेण भंगस्तदुभयाधारात्मद्रव्यत्वावस्थारूपपर्यायेण ध्रौव्यं चेत्युक्तलक्षणस्वकीयस्वकीयपर्यायेषु पन्जाया दव्वं हि संति ते चोक्तलक्षणज्ञानाज्ज्ञानतदुभयाधारात्मद्रव्यत्वावस्थारूपपर्याया हि स्फुटं द्रव्यं सन्ति णियदं निश्चित प्रदेशाभेदेपि स्वकीयस्वकीयसंज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदेन तम्हा दत्वं हदि सव्यं यतो निश्चयाधाराधेयभावेन तिष्ठन्त्युत्पादादयस्तस्मात्कारणादुत्पादादित्रयं स्वसंवेदनज्ञानादिपर्यायत्रयं चान्वयद्रव्याथिकनयेन सर्व द्रव्यं भवति। पूर्वोक्तोत्पादादित्रयस्य तथैव स्वसंवेदनज्ञानादिपर्यायत्रयस्य चानुगताकारेणान्त्रयरूपेण यदाधारभूतं तदन्वयद्रव्यं भण्यते, तद्विपयो यस्य स भवत्यन्वयद्रव्याथिकनयः । यथेवं ज्ञानाज्ञानपर्यायद्वये भंगत्रयं व्याख्यातं तथापि सर्वद्रव्यपर्यायेषु यथासंभवं ज्ञातव्यमित्यभिप्राय: ।।१०१॥ उत्थानिका—आगे यह बताते हैं कि उत्पाद व्यय प्रौव्य का द्रव्य के साथ परस्पर आधार---आधेय भाव है इसलिये अन्वय रूप द्रव्याथिकनय से वे द्रव्य ही हैं
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy