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[ पवयणसारो टीका-जो वास्तव में, विषय और विषयो का सन्निपात (सम्बन्ध होना) जिसका लक्षण है, ऐसे इन्द्रिय और पदार्थ के सन्निकर्ष को प्राप्त करके क्रम से उत्पन्न होने वाले ईहा आदि के क्रम से जानते हैं, वे वास्तव में, जिसका स्व-अस्तित्व काल बीत चुका है उस (भूत पदार्थ) को तथा जिसका स्व अस्तिव काल उपस्थित नहीं हुआ है उस (भविष्यत् पदार्थ) को, यथोक्त (उपरोक्त) लक्षण वाले ग्राह्य-प्राहक सम्बन्ध के असम्भवता के कारण जानने के लिये समर्थ नहीं है ॥४०॥
तात्पर्यवृत्ति अधातोतानागतसूक्ष्मादिपदार्यानिन्द्रियज्ञान न जानातीति विचारयति,
अळं घटपटादिज्ञेयपदार्थ कथंभूतं ? अक्खणिवविध अक्षनिपतितं इन्द्रियप्राप्त इन्द्रियसंबद्ध ईहापुस्वेहि जे विजाणंति ईहापूर्वकं ये विजानन्ति । अवग्रहेहावायादिक्रमेण ये पुरुषा विजानन्ति हि स्फुट तेसि परोक्खभूदं तेषां सम्बन्धि ज्ञानं परोक्षभूतं सत् णादुमसक्कत्ति पण्णतं सूक्ष्मादिपदार्यान् ज्ञातुमशक्यमिति प्रज्ञप्तं कषितम् ।
__ कः ? ज्ञानिभिरिति । तद्यथा-चक्षुरादीन्द्रियं घटपटादिपदार्थपावें गत्वा पश्चादर्थ जानातीति सन्निकर्षलक्षणं नैयायिकमते । अथवा संक्षपेणेन्द्रियार्थयोः सम्बन्धः सन्निकर्षः स एव प्रमाणम् । स च सन्निकर्ष आकाशाद्यमूर्तपदार्थेषु देशान्तरितमेवादिपदार्थेषु कालान्तरितरामरावणादिषु स्वभावान्तरितभूतादिषु तथैवातिसूक्ष्मेषु परचेतोवृत्तिपुद्गलपरमाण्वादिषु च न प्रवर्तते । कस्मादितिचेत् इन्द्रियाणां स्थूलविषयत्वात्, तथैव मूर्तविषयत्वाच्च । ततः कारणादिन्द्रियज्ञानेन सर्वज्ञो न भवति । तत एव चातीन्द्रियज्ञानोत्पत्तिकारणं रागादिविकल्परहितं स्वसंवेदनशानं विहाय पञ्चेन्द्रियसुखसाधनीभूत इन्द्रियज्ञाने नानामनोरथविकल्पजालरूपे मानसज्ञाने च ये रति कुर्वन्ति ते सर्वज्ञापन न लभन्ते इति सूत्राभिप्राय: ॥४०॥
उत्थानिका—आगे यह विचार करते हैं कि इन्द्रियों के द्वारा जो ज्ञान होता है वह भूत और भावी पर्यायों को तथा सूक्ष्म, दूरवर्ती आदि पदार्थों को नहीं जानता है।
___अन्वय सहित विशेषार्थ-(जे) जो कोई छमस्थ (अक्खणिवदिदं) इन्द्रिय गोचर (इन्द्रिय संबद्ध)(अट्ट) पदार्थ को (ईहापुबेहि) ईहापूर्वक (विजाणंति) जानते हैं (तेप्सि) उनका (परोक्खभूवं) परोक्ष भूतज्ञान (णावं) जानने के लिये अर्थात् सूक्ष्म आदि पदार्थों को जानने के लिये (असक्कंति) अशक्य है ऐसा (पण्णत्तं) कहा गया है। ज्ञानियों के द्वारा अथवा उनके ज्ञान से जो परोक्षभूत द्रव्य है वह उनके द्वारा जाना नहीं जा सकता। प्रयोजन यह है कि नैयायिकों के मत में चक्षु आदि इन्द्रिय घट-पट आवि पदार्थों के पास जाकर फिर पदार्थ को जानती हैं अथवा संक्षेप से इन्द्रिय और पदार्थ का सम्बन्ध सम्निकर्ष है वह ही प्रमाण है । ऐसा सन्निकर्ष ज्ञान आकाश आदि अमूर्तिक पदार्थों में, काल से दूर राम रावणादि में, स्वभाव से दूर भूत-प्रेत आदिकों में तथा अतिसूक्ष्म पर के मन के विचार में व पुद्गल