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उभचरित
[२] परमेसरु केवल-णाण-णिति । णिसियरहँ विअक्सा धम्म-विहि ।।३।। 'विसमहों दीदरहों अणिढियहाँ 1 तिहुयण-वम्मीय-परिट्रियों ॥२॥ को काळ-भुयहाँ उन्वरह जो जग जै सम्वु उबसहरह ॥३॥ सही जहि अहिं कहि मि दिदि रमई । तहि तहि णं मइयवह ममह ।।।। के वि गिलह गिलेंवि के विउग्गिलइ काहि (?) मि जम्माषसाणे मिलह 11५।। के विणाय-विलंहि पदसैं वि गसइ। काहि(?) वि अणुलग्गड जे बसह।।६।। के वि कद्दाह सम्गहाँ बरि चदि । के वि खयहाँ णेइ उप्पर प. वि।।७।। के वि धारह धोरऍ पाव-विसेंग । के चि भक्षइ णाणाविह-मिसेंण ८॥
घत्ता
तहों को वि ण चुकच भुक्खियहाँ काल-भुअङ्गही दूसहहाँ । जिण-खयण-रसायणु बहु पियहाँ में अजरामह पर कहाँ ।।५।।
[1] जद काल-भुअङ्गु ण उबरसइ। तो किं सुरवह सम्हाँ खसह ॥सा कहि राधणु सुरवा-इमर-करु। दस-कन्धर इस-मुह वीस-करु ॥२॥ बहुरूविणि जसु पेसणु काह। जसु णाम तिहुमणु थरहरह ॥३॥ बसु चन्दु ण णाहयले तयह रवि। जमु तलषरु बस्यई धुवह हवि ॥४) असु पशु पोदारइ पवणु। कोसाशुपालु जसु वासवणु ।।4।। पण छाउ देम्ति सरसह झुणह। अस वणसह पुष्फचणु कुणइ || सा सम्पय गय कहि रावणहाँ। कहिं रावणु कहिं सुभ परियण ॥
वत्ता अह वि सुम्स वि भवरह मि सकवर एकहि मिलिया । पेक्लेस? फाय-भुभामेण अज र ल व गिलियाई ।।