________________
अटूसत्तरिम संधि
पत्रीने सब कुछ छोड़ दिया। उसने केयूरोंके साथ पोत भी छोड़ दी, अपने मनकी तरंगमें उसने नूपूर छोड़ दिये और सौभाग्यके साथ करधनीको भी त्याग दिया, अँगुलियोंकी सोभाके साथ अँगूठी छोड़ दी, घरके मोहके साथ चूढ़ापाश छोड़ दिया । उसने आलिंगनके भावके साथ केयूर और कण्ठग्रहणके भावके साथ कण्ठा भी छोड़ दिया। शरीर की कान्तिके साथ मणिकुण्डल और गीत ( ? ) के साथ उत्कृष्ट कर्णावतंस छोड़ दिये। मान के साथ ललित हृदय (१) तिलक तथा प्रियके प्रणय प्रणाम के साथ चूणामणिको छोड़ दिया। इस प्रकार विषय सुखके साथ मणि- रत्नादि छोड़ दिये, किन्तु गुरु के वचनोंमें दृढ़ता नहीं छोड़ी ॥१-१०॥
७९