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सत्तरिमो संधि
मन्दोदरी नष्ट हो गया है । तुम्हारा हार नहीं टूटा, परन्तु तारागण ही टूट गये है। तुम्हारा हृदय भग्न नहीं हुआ, प्रत्युत आकाश ही भग्न हो गया है। चक्र नहीं आया है प्रत्युत्त एक महान र आ गया है : हुमना नहीं हुई, परन्तु समुद्र हो सूख गया है। तुम्हारे प्राण नहीं गये, प्रत्युत हमारी आशाएँ ही चली गयी हैं । तुम नहीं सो रहे हो, प्रत्युत यह सारा संसार सो रहा है। तुम सीताको नहीं लाये थे, प्रत्युत यमपुरीको ले आये थे । रामकी सेना कुद्ध नहीं हुई थी, प्रत्युत सिंह ही क्रुद्ध हो उठा था। हे रावण, बेचारे देवताओंका जो समूह, सदैव तुम्हारे सम्मुख मृग रहा, हे रावण, वह तुम जैसे सिंह के अभाव में, अब स्वच्छन्द हो गया है॥१-२॥
[४] जिस निशाचरवंशकी समस्त सुर और असुरोंने प्रशंसा की थी आज उस राक्षस वंशका अमङ्गल आ पहुँचा है । खल, क्षुद्र, चुगलखोर और मूर्ख देवसमूहकी कामना आज पूरी हो गयी। नगाड़े बजे | समुद्र गरजे, अब सूर्य स्वतन्त्र होकर तपे, अब चन्द्र प्रभासे भास्वर हो जाये, हवा अब दुनियामें आजादीसे बहे, कुबेर भी अब अपना वैभव देख ले । अब आग दुनियामें जी भर जल ले। आज यमका यमत्व निभ ले। अब इन्द्र अपनी इन्द्रता चला ले। आज मेघोंके मनोरथ सफल हो लें, और महामह उच्छखल हो लें। आज वनस्पतियाँ भी फूल-फल लें, सरस्वती भी आज मुक्तकंठ होकर गाले । जब रावणके सडोर और नूपुरसहित अन्तःपुरने यह सुना कि युद्धमें रायण मारा गया है, तो वह मन्दोदरीको लेकर रोसा-बिसूरता वहाँ आया ॥१-९॥