SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [६०. जवइमो संधि तिहुमण-सयम्भु-भवलस को गुणे वपिणउं जए तरह । वालेण वि जेण सयम्भु-कम्प-नारो समुम्बूदो । सुपर सुः३.इ लाइ ' तइम-णियम-जुङ । परमेसर कहें सीवेण दसरह-रागड केल्धु हुउ ॥ध्रुवक।। अपणु नि पइँ लक्खिय सुख-मइ । कहें लवणसह मि करण गइ।।१।। का अणयहाँ कणयों केक्का। का अवराइयो सु-सुप्पहहूँ ।।२।। का लक्रपण-मायहें केकय । का भामण्डलही चारु-मइहें ॥३॥ अक्सइ कति सुर-णमिय-पउ । दसरहु लेरहम सा गउ ॥४॥ परमाल वीस सायरई जहि । जार नि परषि उप्पण्णु ताहि ।।५ परिमाणु जेस्थु पाहुट्ट कर। अवर विश्रणेय तहिं जाय गर ॥५॥ अचराइय- केयमुप्पहउ । कइका-साहिया परिसह-सहउ १०॥ अण्ण नि घोर-तप-त्तियउ। सवा देवत्तणु पत्तियड १०॥ धत्ता जे पुरुव-जम्में तउन्दण लवणकुस-शामालकिय विणि वि तिहुवर्णक-विजइ । तहुँ होसह पदमिय गइ ॥९॥ णम्दण-वण-भूसिय-कन्दरहों। दाह ग-दिसा गिरि-मन्दरही ॥३॥ कुरू भूमि भामण्डलु वि हुङ । पल-तय-भाउ-पमाण-जुद्ध ॥२।। पुछिउ सुरवहण 'केण फलंण' आयणहि तं पि युत्तु वलेंग ॥३॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy