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पउमचरिउ
कवि सरसूच्छु जेम पीलिज्जइ । कवलि जिद्द दस दिसु
लिन
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सेर को वि ऋणु जिह कण्डिज्जइ । को वि पुणु रुक्खु जेब खण्डिलइ ॥५॥ तिलु विलु करवतेंहि कपिज्जइ ॥ ६ ॥ को वि मयगल दस्ते हि पेलिजाइ ॥७ कवि को द्विरुझर लुइ ॥ ८ ॥ को वि रु छिज्जद्द छज्जड विज्जइ ॥९ कॉ विज पुणु मूरिजइ ॥१०॥
को वि पिट्टिजड़ वज्झइ मुबइ । कौं वि पुणु दज्झष्ट रहसि
को विमारि खज्जद विज । को त्रिपलिज को वलि दिज्जइ । को वि दजिह को वि मलिजह ॥ ११ को वि पुत्र रिङ मिवि पधावइ ||१२
को विकाइ केन्द्र धाहाव
घता
तर्हि सम्बुकर्क हम्मन्यु गय-पाणि-सन्त-सरीक
धोरारुण-जयणु । दीसह दहत्रयणु || १३||
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सम्बुकुरो सम ते । 'रे रे खल-मावण असुर पास । अन विदुराउनसमु ण होइ । कुग्त्तणु सुऍ करें विमल चित्तु' । उसम नावों लम्बुकु बुकु | तो गरि विसाणोवरि णिएव । 'कोतुहुँ के कज्जें एत्थु भाड' ।
बोखिति सुराहित्रेण ||१५ ढकाएँ ऍड दुव-भाव ॥ २ ॥ दुट्टु पत्तउ अण्णु जि गाई कोई ॥१३॥ तं निसुनि णं श्रमिण सितु ॥ - ॥ पुणु पुणु वि पवोह साथ-मक्कु ॥५॥ लक्षण - रावण पुच्छन्ति वेषि ॥ ६ ॥ विधिणु अक्सर अमर-राउ 11
'उँ सा चिरु होती जणय-धीय । जा रावण पहूँ अवहरेंषि णीय ॥८॥
जा मर्चे सार रामायणासु । तव चरण पहावें जाय इष्छु ।
बा जम-दिति व णिसियर - जणासु ॥१९ अणु विक्खिटि रामचन्दु ॥ १० ॥
यहाँ कोडि सिलाय पाणु जाट । इउँ पुष्णु तुम्ह पोहणाँ आठ ॥११॥