SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१८ पउमचरिउ कवि सरसूच्छु जेम पीलिज्जइ । कवलि जिद्द दस दिसु लिन I सेर को वि ऋणु जिह कण्डिज्जइ । को वि पुणु रुक्खु जेब खण्डिलइ ॥५॥ तिलु विलु करवतेंहि कपिज्जइ ॥ ६ ॥ को वि मयगल दस्ते हि पेलिजाइ ॥७ कवि को द्विरुझर लुइ ॥ ८ ॥ को वि रु छिज्जद्द छज्जड विज्जइ ॥९ कॉ विज पुणु मूरिजइ ॥१०॥ को वि पिट्टिजड़ वज्झइ मुबइ । कौं वि पुणु दज्झष्ट रहसि को विमारि खज्जद विज । को त्रिपलिज को वलि दिज्जइ । को वि दजिह को वि मलिजह ॥ ११ को वि पुत्र रिङ मिवि पधावइ ||१२ को विकाइ केन्द्र धाहाव घता तर्हि सम्बुकर्क हम्मन्यु गय-पाणि-सन्त-सरीक धोरारुण-जयणु । दीसह दहत्रयणु || १३|| [ ९ ] सम्बुकुरो सम ते । 'रे रे खल-मावण असुर पास । अन विदुराउनसमु ण होइ । कुग्त्तणु सुऍ करें विमल चित्तु' । उसम नावों लम्बुकु बुकु | तो गरि विसाणोवरि णिएव । 'कोतुहुँ के कज्जें एत्थु भाड' । बोखिति सुराहित्रेण ||१५ ढकाएँ ऍड दुव-भाव ॥ २ ॥ दुट्टु पत्तउ अण्णु जि गाई कोई ॥१३॥ तं निसुनि णं श्रमिण सितु ॥ - ॥ पुणु पुणु वि पवोह साथ-मक्कु ॥५॥ लक्षण - रावण पुच्छन्ति वेषि ॥ ६ ॥ विधिणु अक्सर अमर-राउ 11 'उँ सा चिरु होती जणय-धीय । जा रावण पहूँ अवहरेंषि णीय ॥८॥ जा मर्चे सार रामायणासु । तव चरण पहावें जाय इष्छु । बा जम-दिति व णिसियर - जणासु ॥१९ अणु विक्खिटि रामचन्दु ॥ १० ॥ यहाँ कोडि सिलाय पाणु जाट । इउँ पुष्णु तुम्ह पोहणाँ आठ ॥११॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy