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उमरि
कता तो गिब्वाण हि दुन्दुहि ताग्यि कुसुम-विटि गयण-यलहों पाडिय। सुरहि-गन्ध-मारूड खण श्रा (1) छउ तूर-महारड जगें में समाज॥९
[1] मेलपि राय-लरिछ-वियसिय-भुछु । णिय-सन्साणे उवि णिय-तणुरुदु ।। १ सप्हणु वि स-मिषु रिसि जायउ । छजजघु गिय-मन-सहायत ॥२॥ छको णिय-पएँ थवि सु-भूसणु । सहुँ तियाएँ पान हउ विहोसणु ॥शा णिय-पर अङ्गम-तणयहाँ देपिणु । सुग्गी वि थिउ दिक्स लएपिणु॥ सिंह शक-गीक सेड हसिखवण। सार तर रम्मु रइवखणु ।।५॥ गवउ गवाखु सखु गउ दहिमुड। इन्दु महिन्दु बिराहिउ दुम्मुहु ।।६।। सम्बर रमणकेसि महुसायरु। मङ्गल अङ्गु सुवेल गुगायह ।।७।। अणत कगड ससिकिरणु जयाधर कुम्दु पसपणकित्ति खेलम्भरु ।।८।। इय अवर वि जिग-गुण सुमरन्ता । सोलह सहस पहुहुँ गितसम्ता १९.
पत्ता हरि-बल-मापरि-सुप्पह-एमुह? सुग्गइ-गमग-परिष्ट्रिय समुहहुँ । पम्बहराई जगें गाम-पगास, जुवइहि सत्ततीस सहासई ॥१०॥
। [२] सो राम-महारिसि विगप-णेहु। प्रदिण-ससहर-कर-धवक-देहु ॥१॥ उदरिय-महण्यम-गरम-मारु। मबषहरि-णिवारशु पहय-मारु ॥२॥ बारह-मिड-बुजुर-तम-णिउसु। परिसह-परिसहणु ति-गुत्ति-गुजु ॥३॥ गिरि-सिहर परिट्रिब एमाश। सम्बरि-उपाइय-अहि-माण ॥