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पंचहरिमो संधि नहीं है, परन्तु जश्च हंसद्वीपमें शत्रुसेना प्रवेश कर चुकी थी, तब रत्नाश्रवके सच्चे बेटे होते हुए भी, तुम्हें इस प्रकार छोड़कर पलायन करना क्या उचित था ?" यह कहकर, निडर होकर मयने उसके रथ कवच और छत्रके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। निशाचर सेना में कोलाहल होने लगा। देववनिताएँ आपस में बातें करने लगी। विभीषण सहित हनुमान, भामण्डल
और सुग्रीव अपना तेज खो चुके हैं। गतपाप मयने वृद्ध होनेके कारण किसी तरह उनके प्राण भर नहीं लिये ॥१-१०॥
[७] तब दशरथके बड़े बेटे रामने सिंहोंसे जुते हुए अपने रथको आगे बढ़ाया। जुते हुए सिंहोंके नख एकदम पैने थे
और उनकी अयाल चंचल थी। रथ पर सफेद महाध्वज लगे हुए थे । यशकी धवल धूलसे उनके अंग धवल थे। धवल और स्वच्छ कमलकी तरह उनकी नाभि थी । उनका वंश धवल था और यह स्वभावसे मी धवल थे । पुरुष लक्ष्मीके लिए राजहंसके समान थे । वह सफेदों में सफेद थे | उनका आतपत्र भी सफेद था। इस प्रकार निशाचरोंपर प्रहार करते हुए राम वहाँ पहुँचे । खेल खेलमें, उन्होंने मयका घमण्ड चूर-चूर कर दिया, रथ रोक कर, उसे वापस कर दिया । ठीक इसी समय, देवताओंको सतानेवाले रावणने अपना रथ बीच में लाकर खड़ा कर दिया । बहरूपिणी विद्याके सहारे, वह तरह-तरहके रूपोंका प्रदर्शन कर रहा था। दस हजार हाथी उसके रथको खींच रहे थे। उसके शरीरके दस हजार अंगरक्षक थे । सारथि उसे अप्रिम लक्ष्यका संकेत दे रहा था । राम और रावण ऐसे लगते थे मानो हिमगिरि और अञ्जनगिरिको बहुत समयके बाद एकमें गढ़ दिया गया हो। उस भयंकर युद्धमें क्रोधाभिभूत राम और रावण आपस में भिड़ गये ।।१-१०||