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'उसमषिद
घत्ता
कि कलयल दिग्गु हुभासणु। महि जं जाय सम-जारिय। सो गाहिं को वितहि अवसर जेण ण मुकी धाइरिय ||५|
[१२] खड-कार-विच्छ-पलित्तएँ। घाहाविष कोसलएँ सुमित्त ॥३॥ धाहाविउ सोमिसि-कुमारें । 'अञ्ज भाय मुअ महु अधियारें ॥२॥ भाहाविउ भामण्डल-जणाएँ हिं! घाहाधिध फवणकुस-ताएँ हिं ॥३॥ धाहाविड़ लकालकारें। पाहाविउ हणुवन्त-मारे १३॥ धाहाविउ सुग्गीक-परिन्दें। धाहाविउ महिन्द-माहिन्द ।।५।। माहाविड सर्वे हि सामन्स हि। रामही घिन्द्धिकार कान्स हि ।।६।। घाहाविउ वदेहि-कएं विहिं। लयासुन्दर-तियवाएविहिं ।।७।। उखु-मुहेण पढिय-सोपं । धाहाचि णायरिएं लोएं ॥८||
घत्ता 'णि? णिरासु मायारउ विय-गारस कूर-मह । पाड जाणहुँ सीप बहेविण रामु कसह कवण गई ॥९॥
[१३] घिउ परपन्सरे कारणु मारिठ। गिरवसेसु जगु धूमधारित ॥१॥ जाउ विपफुरन्ति सहि अवसरें। णं विज्जुलल जलय-जालन्तरें ॥२॥ सीय सहसण गट कम्पिय । 'हुकुहुषु सिहि' एम पजम्पिय ||३॥ 'एहु दे गुण-गाहण-णिवासणु। रहें छह जई सचड में हुभास ॥ गरें रहें जई जिप-मासणु छाडिउ । हें उन्हें जा णिम-गौतु ण मण्डित।।५ यह उहें जइ हर केण वि जणी । सह ग्हें जा धारिस-विहणी ।।६।। है बहें जब मसारहाँ दोही। हें हें जा परमोय-बिरोही ।।